Monday 26 September 2011

मन चंचल है अधैर्य है चलायमान है अधीर है !
जीत जाता अधिकाँश युद्ध, ये ऐसा रणवीर है!!
रोज नया कुछ पाने की इच्छाए इसकी बदती जाती है!
बुध्धि इसकी देख हरकते,कसमसाती है,चिल्लाती है !!
पर ये है स्वार्थ का पुतला, इसको किसी की पीर नहीं है !
जीत इसे काबू में रख ले , कोई ऐसा वीर नहीं है!!
बड़े बड़े योगी जन को ये ऊँगली पर नाच नचाता है!
तोड़ के लोगों के संकल्प/ व्रत ये अट्टहास लगाता है!!
जो कहे के मन को जीत लिया, ये उस को मुहं की खिलाता है!
महा विजय्यी, महा योद्धाओं को, चारों खाने चित कर जाता है!!
मनु (मन) से सृष्टि शुरू हुई और मनुष्य इस धरा पर आया !
कभी कोई स्वनिर्माता को भी है पराजित कर पाया?
इसे पराजित कर लेने का कभी भी करो गुमान नहीं !
ये कार्य बड़ा ही दुष्कर है और हम इन्सां है,भगवान् नहीं!!
जीत नहीं सकते हम इसको पर परिवर्तित कर दें हम इस की राहें!
इच्छायें मारे से मरे ना, तो आओ बदल दे हम अपनी चाहें !!
हे! मन तो ईश्वर में खो जा, तू उसका रूप निहारा कर!
तू उस के आगे नाचा कर और हर दम उसे पुकारा कर!!
करके पुण्य कार्य/ सद्कार्य तू ,दुखियों के दुःख निवारा कर!
सब व्यसन त्याग दे आज/अभी,बस प्रभु प्रेम का नशा गवारां कर!!