गीत अंतरात्मा के
Tuesday 23 August 2016
गीत अंतरात्मा के: आशा
गीत अंतरात्मा के: आशा: मैं एक आशा हूँ मेरे टूट जाने का तो सवाल ही नहीं होता मैं बनी रहती हूँ हर एक मन में ताकि हर मन जीवित रह सके मुझे खुद को बचाए ही रखन...
Friday 31 July 2015
गुरु पूर्णिमा
आज गुरु पूर्णिमा है ! अपने गुरु के प्रति आभार प्रकट करने का दिवस ,गुरु शब्द का अर्थ होता है अँधेरे से प्रकाश की और ले जाने वाला ,अज्ञान ज्ञान की और ले जाने वाला ! मुंशी रूप में जन्म लेने के बाद हमे अनेक गुरु मिलते है सबसे पहले मान के रूप में फिर पिता के रूप में ,बहन भाई ,मित्र ,टीचर के रूप में दादा दादी के रूप में ,
आध्यात्मिक ज्ञान देने वाले गुरु के रूप में और सब से बड़ा गुरु परमपिता परमात्मा जो इन सभी के भीतर विराजित होकर इनके द्वारा हमे प्रकाश की और ले चलता है !
अपने बच्चों को इस दिन का ज्ञान दें उसे बताएं पहली गुरु माँ है ,फिर घर के बुजुर्ग है ,उससे कहें सबके चरण स्पर्श करके उनका धन्याद करे के आप ने मुझे काफी कुछ सिखाया उसके लिए शुक्रिया ,यदि चाहें तो कुछ उपहार भी दिलवायें ,टीचर के प्रति आभर व्यक्त करने को कहें ,स्कुल टीचर हो , या घर में आकर पढने वाला टीचर , बच्चा सब को बधाई दे अपने तरीके से अपने शब्दों में !
फिर सब से बड़े परमपिता परमेश्वर को भी शुक्रिया कहे ,उनके चरणों में कुछ पुष्प भी रखें तो उत्तम नहीं तो बस प्रणाम कर लें !
हर दिवस और हर त्यौहार का मुख्य उद्देश्य होता है इंसान में इंसान ,प्रकृति और परमात्मा के प्रति प्रेम और आभार के भाव को बढ़ाना ,ये भाव ही अच्छा इंसान बनाने सहायक होते है !
Tuesday 5 May 2015
सेल्फ रियलाइजेशन (आत्म जान )
इस शब्द (आत्म- ज्ञान )में ही हमारी पहचान छुपी है !
प्रश्न :- पर आत्मा को ये की क्या जरूरत के वो आत्मा है ?
उत्तर :- जरूरत है, क्युकी आत्मा स्वयं को शरीर जान कर जिस प्रकार के कार्य करती है वे कार्य काम ,क्रोध। लोभ मोह से प्रेरित किये कार्य हो जाते है ,जिसके कारण अनेक प्रकार की गलतियां अनजाने या जानते हुए हो जाती है ,यदि आत्मा स्वयं के ज्ञान के बाद इस देह के सब सम्भन्धों को निबहेँ तो वो ,सही और उत्तम कार्य करेगी !
प्रश्न :- उदाहरण से समझाइये कैसे ?
उत्तर :- जब आत्म ज्ञान हो के मैं आत्मा हूँ ,शरीर में रहकर अपना धर्म और वक़्त पूरा करके इस देह को छोड़कर ,अगली देह में जाना है और इस देह में रहते हुए जो कर्म करने है उस के ही आधार पर मेरे पुण्य और पाप संचित होगें वो ही मेरे लिए अगली देह कैसी हो इस बात का निर्धारण करेंगे ! यदि इतनी सी बात देहधारी समझ ले तो क्या वो कोई दुष्कर्म ,पाप /अनैतिक कर्म करेगा ? कभी नहीं करेगा ,ये तो छोटा सा उदाहरण है ,सेल्फ रियलाइजेशन से खुद को निरन्तर जोड़े रहने से इंसान में इतने अधिक परिवर्तन आते है के वो खुदब-खुद ,सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ता जाता है ,उसके लिए तरक्की और उन्नति की राहें खुलती जाती है जिसके फलस्वरूप वो अपना ये जन्म और अगले सब ही जन्म बहुत अच्छे तरीके से जीता है !
प्रश्न :- ये सब तो ठीक है पर जब हम खुद को आत्मा कहते है तो महसूस क्यों नहीं होता के हम आत्मा है ,सेल्फ रियलाइजेशन की सही विधि क्या है ?
उत्तर :- सतयुग में आत्म ज्ञान भरपूर था,इसलिए मनुष्य अपराध नहीं करता था ,धीरे धीरे पञ्चविकारों में फँसकर मनुष्य स्वयं को देह समझ कर कर्म करने लगा और ये ही कारण रहा के पाप और दुष्कर्म निरन्तर बढ़ते रहे ,इतने जन्मों का अभ्यास हो गया है न खुद को देह मानने का ,सब्र से धीरे धीरे ही ये अभ्यास छूटेगा !
इसके लिए नियम जरूरी है ,कोई भी एक वक़्त निश्चित करें , ऑफिस के लिए जाते वक़्त यदि बस या टेक्सी /मेट्रो इत्यादि काप्रयोग करते है तो ये वक़्त अच्छा है ,या जब भी दिन में पांच मिनट निकल पाएँ ,या रात को सोने से पहले ५ मिनट आँखें बंद कीजिये और दोहराये
मैं आत्मा हूँ !
मैं देह नहीं ,देहधारी हूँ !
मस्तिष्क के बीच ,चमकते सितारे की तरह में स्वरूप है !
मैं शांत हूँ !
मैं पवित्र हूँ !
मैं परम -आत्मा का अंश हूँ !
मैं सदा ऐसे कार्य करूंगा जिससे मेरा परम पिता मुझ पर गर्व कर सके !
और अंत में 5 बार दोहराये मैं शांत हूँ ,मैं शांत हूँ !
सब से जरूरी है किसी एक वक़्त का नियम बनाना ,वरना ये आप कभी नहीं कर पायेगे ,माया करने ही नहीं देगी !
Tuesday 21 April 2015
हम आत्मा है ये मानने या जानने से क्या लाभ
ये मानने से हमारा पूरा जीवन बदल जाता है ,हमारा नज़रिया और मनुष्यों के लिए और जीवन के प्रति भी बदल जाता है ,हम खुश रहते है और ख़ुशी बाटते है ,हम अपने जीवन में शांति और ख़ुशी दो चीजे ही तो चाहते है और इस के लिए उम्र भर जद्दोजहद करते है पर सही राह नहीं चुनते और कुछ हाथ नहीं लगता ,पहले खुद को जाने समझे फिर जीवन को जीये !
कुछ सौ साल पहले हमारी शिक्षा की शुरुआत ही इस बात से की जाती थी की हम आत्मा है और इस पञ्च -भूत के शरीर में हमारा आना ,जीवन को जीना और शरीर की उम्र पूरी होने पर इसे त्याग नए शरीर की तरफ प्रस्थान करना ये सब ईश्वर द्वारा रचे इस सृष्टि मंच / रंग -मंच का एक कभी न रुकने वाला नाटक है ,हमे जो रोल मिला है जिस शरीर में जिस हालत में ,उसे पूरी ईमानदारी से सब का ध्यान रखते हुए जीना ,ये ही हमारा धर्म है ! धर्म की ये बड़ी ही सहज और सरल परिभाषा थी जो की समय के साथ बदलते हुए काफी विकृत हो चुकी है !
आत्मा क्या है ?
++++++++++
आत्मा एक ऊर्जा पुंज है ,सकारात्मक ऊर्जा पुंज ( पॉजिटिव एनर्जी )
ये ऊर्जा पुंज एक असीमित और अनन्त ऊर्जा पुंज का अंश है अर्थात परम +आत्मा का अंश !
परमआत्मा हमारा निर्माता /रचेता /परम पिता है हम उसे अनेक नामों से पुकारते है !
परमात्मा की शक्ति असीमित है अनन्त है पर हमारी शक्ति सीमित है ,हमे खुद को रिचार्ज करते रहने की जरूरत होती है जैसे मोबाईल वगैरह को चार्ज किया जाता है ,हम चार्ज होते है पॉजिटिव एनर्जी से !
यदि हमे अपने आस पास के लोगों से पॉजिटिव एनर्जी मिलती रहे तो हम खुश ,सुखी और शांत रहते है !
सृष्टि चक्र के आरम्भ में जब सतयुग और त्रेता युग थे तब पॉजिटिव एनर्जी की कमी नहीं थी ,जब तक ये ज्ञान भी था के हम आत्मा है ,जैसे जैसे ये ज्ञान लुप्त होता गया हम देह -अभिमानी होते गए ,पंच -विकारों में फसते गए और दुःख और अशांति के शिकार बनते गए भौतिक पदार्थों में सुख तलाशने लगे ,अगर उन में सुख शांति होते तो कलयुग में जितने भौतिक सुख है उतने किसी युग में नहीं होते पर मानव इस युग में ही सब से ज्यादा दुखी क्यूँ है ?
भौतिक वस्तुएँ सुविधा तो दे सकती है सुख नहीं दे सकती ! शांति तो कभी नहीं दे सकती ! फिर सुख शांति हम कहाँ तलाशे ? उसके लिए अपने मूल में वापस जाना होगा ,हम परम आत्मा का अंश है आत्मा है पॉजिटिव एनर्जी है उसी से हम बने है उसी से हम चार्ज होते है हमारी शक्तियाँ उसी से बढ़ती है और सुख शांति भी हमे वहीं से मिलेगा !
क्या करें
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जैसे हम आत्मा है वैसे ही अन्य सब को भी आत्मा जाने ,जिसे भी देखे याद करें ये भी आत्मा है मैं भी, हम एक परमात्मा का अंश है कोई छोटा नहीं बड़ा नहीं ,जब उसे अपना जानेंगे तो उसके लिए प्रेम और स्नेह के भाव मन में आयेगे ,पति पत्नी ,माँ बच्चे ,बहन भाई के लिए प्रेम आता है न ? जब वो भी हमारे है एक अंश है तो प्रेम /स्नेह मन में आएगा ही ,ये प्रेम /स्नेह /दया /करुणा ये पॉजिटिव एनर्जी का काफी निर्माण करते है ,जैसे ही हम दूसरों के लिए पॉजिटिव सोचना शुरू करते है हमारी चार्जिंग भी साथ साथ शुरू हो जाती है ,किसी से स्नेह करें ,करुणा वश या दया से कुछ काम करें तो पहले ख़ुशी हम पते है और सामने वाला बाद में ख़ुशी पाता है ऐसा होता है न?
तरीका हमे मिल गया ,पॉजिटिव रहें ,खुशियाँ बाँटें ,मुस्कान बाटें ,औरों की कमियों को नहीं खूबियों को देखें और खूब खूब पॉजिटिव एनर्जी औरों को दें साथ ही खुद भी पाएं !
आसपास के लोग बुरे है गलत है हमारी गलती निकलते है ,कमियां देखते है तब क्या करें और कहना आसान ऐ पॉजिटिव रहो पर अधिक देर रह ही नहीं पते तो क्या करें ? ये सब अगली पोस्ट में बात करेंगे !
इतना सब लिखा मेरा हौसला बढ़ाने के लिए क्या कुछ पॉजिटिव किया जा सकता है सोचियेगा :) सोचना क्या है पोस्ट शेयर करें ,अपनी राय दें ,सुझाव दें
Monday 16 March 2015
हमारे अन्नदाता की खराब हालत के कुछ जिम्मेदार हम भी है ?
हमारा जीवन किसानों के साथ परोक्ष रूप से ही नहीं प्रत्यक्ष में भी जुडा हुआ है ,हमारी रसोई में अन्न ,सब्जी फल पहुचता किसी भी माध्यम से हो किन्तु उसे जीवन देने वाला तो किसान ही है यदि किसान न हो तो हम कहाँ से लायेगे ये सब ? पर हम लोग क्या अपने अन्नदाता किसान के बारे में जरा भी सवेदन शील है? आज का किसान कितना परेशान है क्या आप ये जानते है ? आइये पहले ये ही समझ लें
किसान , अन्नदाता भी कहा जाता है उसकी हालत और इज्जत ५० और ६० के दशक में आज से बहुत बेहतर थी ,आज़ादी की लड़ाई में भी सब से अधिक आर्थिक योगदान भी किसानों का ही था ! आज़ादी के बाद सब के हालत सुधरे किन्तु किसान को तो मानो हाशिये पर ही धकेल दिया गया ! किसान जो फसल अपने खून पसीने से सींचता है उस का मूल्य वो स्वयं निर्धारित नहीं कर सकता ! उसे जो मूल्य मिलता है उसे से उसकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है के अगली फसल के लिए उसकी जेब में पैसे ही नहीं होते और उसे क़र्ज़ लेना पड़ता है ! उसके लिए निर्धारित यूरिया / खाद / कीटनाशक जिन पर सब्सिटी मिलती है उस तक न पहुँच कर बाजार में ब्लैक में बेच दिया जाता है और किसान उसका दोगुना मूल्य चूका कर अपने खेतों में डालता है ,महंगे दाम पर बीज मिलते है ,जैसे तैसे बेचारा किसान अपनी फसल को बोता है और जब उसे लगता है अब कुछ ही दिनों में फसल पकने वाली है तो अक्सर बेमौसम बरसात /आंधी /तूफान /बाढ़ /और सूखे के कारण वो कभी आधी तो कभी पूरी फसल खो देता है ! सरकार की तरफ से घोषित सहायता राशि उस तक पहुंच ही नहीं पाती ! वो असहाय है कुछ कर नहीं पाता , पर हम लोग लोग तो इतने असहाय नहीं है ,जिसके हाथ का अन्न खाकर जीवित है ,उसकी मुसीबत में हम उस के कभी काम आए है ? हम लोगों के पास माध्यम है सोशल मिडिया यदि हम लोग चाहें तो किसी भी मुद्दे को इतना उठा सकते है के सरकार मजबूर हो जाती है उस मुद्दे पर काम करने के लिए ! हम कितना सोचते है इस विषय पर कितना लिखते है ? क्या ऐसा नहीं हो सकता के इस विषय पर हम सब साथ मिलकर लिखें? कोई ब्लॉग या कोई पेज़ ऐसा बनाएं जिस पर गंभीरता से लिखा जाएँ और ऐसे लिखा जाये के सोई सरक़ार की आँखें खुल जाएँ ,किसानों से उनकी मर्ज़ी के बिना ज़मीन लेना ये विषय भी उठाना चाहिए ,विकास इतना भी नहीं हो जाना चाहिए के खेती की ज़मीन खत्म हो जाएँ और हम और देशों से अनाज माँगा कर खाएं,प्लीज़ इस पर गंभीरता से सोचें
Monday 2 March 2015
कर्पूर या कपूर
हम भारतीय इस नाम से भली भांति परिचित है ,पूजा में कपूर का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान होता है
इसे कई तरह की दवाइयों में ,बाम इत्यादि में भी काफी इस्तेमाल किया जाता है!
ये जीवाणुओं का नाश करने में काफी कारगर होता है ,जुकाम या वायरल जो की हवा या छींकने -खाँसने से फैलते है उन्हें समाप्त करने में इसकी सहायता ली जा सकती है ! आज कल फैल रहे स्वाइन फ्लू में भी इसका उपयोग काफी हद तक उपयोगी है काफी लोग कर्पूर की छोटी से पोटली बनाकर साथ रखते है और भीड़भाड़ वाले इलाके में इसे सूंघते रहते है ,यदि कीटाणु हमारी साँसों तक पहुंच भी जाता है तो इसकी गंघ उसे मार डालती है ,बच्चों के स्कुल बैग पर भी मलमल के कपड़े की पोटली बनाकर उसमे कुछ टुकड़े कर्पूर रख दें,जिससे के उसके आस-पास इसकी गन्ध फैलती रहे ,ऑफिस जाने वाले लोग भी अपने साथ ये छोटी से पोटली लेकर जाये अपनी मेज़ पर या आस पास किसी भी स्थान पर रख दे , अपने घर के दरवाजे पर भी ऐसी पोटली बंधने से घर में कीटाणु का प्रवेश कम होगा !
मच्छर नाशक
मच्छर को भगाने में भी इसका उपयोग काफी सहायक होता है ,गर्म पानी में इसकी एक या २ टिकिया हर एक घंटे में डालते रहे मच्छर काफी कम आयेगे एयर इसकी महक नुकसान भी नहीं करेगी !
अधिक मात्रा में कर्पूर सूंघने से नींद या हलकी बेहोशी भी आ सकती है इसलिए इसका इस्तेमाल सावधानी से करें ! पूजा का कपूर या देशी कपूर ही सूंघने में इस्तेमाल करें कपड़ों में रखने वाला कपूर न सूंघे उसे घर में रखा जा सकता है
हम भारतीय इस नाम से भली भांति परिचित है ,पूजा में कपूर का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान होता है
इसे कई तरह की दवाइयों में ,बाम इत्यादि में भी काफी इस्तेमाल किया जाता है!
ये जीवाणुओं का नाश करने में काफी कारगर होता है ,जुकाम या वायरल जो की हवा या छींकने -खाँसने से फैलते है उन्हें समाप्त करने में इसकी सहायता ली जा सकती है ! आज कल फैल रहे स्वाइन फ्लू में भी इसका उपयोग काफी हद तक उपयोगी है काफी लोग कर्पूर की छोटी से पोटली बनाकर साथ रखते है और भीड़भाड़ वाले इलाके में इसे सूंघते रहते है ,यदि कीटाणु हमारी साँसों तक पहुंच भी जाता है तो इसकी गंघ उसे मार डालती है ,बच्चों के स्कुल बैग पर भी मलमल के कपड़े की पोटली बनाकर उसमे कुछ टुकड़े कर्पूर रख दें,जिससे के उसके आस-पास इसकी गन्ध फैलती रहे ,ऑफिस जाने वाले लोग भी अपने साथ ये छोटी से पोटली लेकर जाये अपनी मेज़ पर या आस पास किसी भी स्थान पर रख दे , अपने घर के दरवाजे पर भी ऐसी पोटली बंधने से घर में कीटाणु का प्रवेश कम होगा !
मच्छर नाशक
मच्छर को भगाने में भी इसका उपयोग काफी सहायक होता है ,गर्म पानी में इसकी एक या २ टिकिया हर एक घंटे में डालते रहे मच्छर काफी कम आयेगे एयर इसकी महक नुकसान भी नहीं करेगी !
अधिक मात्रा में कर्पूर सूंघने से नींद या हलकी बेहोशी भी आ सकती है इसलिए इसका इस्तेमाल सावधानी से करें ! पूजा का कपूर या देशी कपूर ही सूंघने में इस्तेमाल करें कपड़ों में रखने वाला कपूर न सूंघे उसे घर में रखा जा सकता है
Friday 27 February 2015
बचाव ही सावधानी है !
समाज में सोये हुए लोगों की भीड़ कुछ बढ़ सी गयी है !१००० लोगों का स्वाइन फ्लू से मर जाना इसका एक प्रमाण है ,थोड़ी सी जागरूकता इन लोगों को बचा सकती थी ,सोचिये यदि इन के चेहरे पर मास्क लगा होता,घर आकर ठीक से हाथ मुह धोये होते तो किसी बहन का भाई किसी माँ का बेटा आज उसके साथ होता,क्या हम भी इस गुनाह के भागीदार है ? क्या हम ने अपना योगदान दिया जागरूकता फ़ैलाने में ? यदि नहीं तो अभी भी इस कार्य को किया जा सकता है,ये खबरे टीवी चैनल अब काम दिखा रहें है ,पर जितनी भी खबरें इस विषय में आ रही है उससे ये ही समझ आ रहा है के बीमारी लगातार बढ़ती जा रही है ,हम लोगों की उदासीनता का ये असर न हो के गुजरात की तरह पुरे भारत में धारा 144 लगानी पड़े सरकार को ! इसे एक अभियान की तरह लें, कमर कस लीजिये जागरूकता लाने में! सावधानी
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