Thursday 6 September 2012

प्रेम और उपासना



एक पुरानी  रचना   (प्रेम और उपासना )

प्रेम और   उपासना   में   बहुत    अधिक  फर्क नहीं  है
बशर्ते के     दोनों      में   पावनता   हो,  पवित्रता  हो

प्रेम    को    उपासना     भी    बनाया   जा  सकता   है
और उपासना को प्रेम भी   बनाया    जा     सकता     है

जिस से प्रेम हो, मन से उस की उपासना भी की जाये 
प्रेम  की पराकाष्ठा   पर   पंहुचा   जा    सकता      है

और जिस की उपासना की जाये यदि उससे प्रेम भी किया जाये
  तो   परम     उपलब्धि      को  प्राप्त     किया    जा  सकता है

कितनी    मिलती     जुलती     है ना    दोनों     ही     बातें ?
प्रेम   में   अगर   वासना ना हो ,और   उपासना  में ईश्वर से
 कुछ   चाहना    ना    हो ,    कुछ    भी    मांगना     ना    हो

तो प्रेम ही     उपासना     है ,और उपासना    ही प्रेम है
नाम है   जुदा   जुदा    पर   अंततः     तो      एक     है  
( अवन्ती सिंह  )