Thursday 17 November 2011

मुद्दतों पहले जो  डूबी थी   वो  पूंजी   मिल गयी 
जो कभी दरिया में फेंकी थी वो  नेकी  मिल गयी

ख़ुदकुशी  करने  पे  आमादा  थी  नाकामी  मेरी 
फिर मुझे दिवार  पर  चढ़ती  ये चीटी मिल गयी 


मैं इसी मिटटी से  उठ्ठा  था  बबूले  की तरह,और 
 फिर एक दिन  इसी  मिट्टी में मिट्टी  मिल  गयी 


मैं इसे इनाम  समझूँ  या   सज़ा   का नाम दूँ 
उंगलियाँ कटते ही तोहफे में अंगूठी मिल गयी 

फिर किसी ने लक्ष्मी देवी को ठोकर मार दी
आज कूड़ेदान में फिर एक बच्ची मिल गयी  


(मुनव्वर राना)