Saturday 3 December 2011

हम को खूब आता है

  गम  पी    कर    मुस्काते    जाना,  हम    को      खूब        आता  है
आग    हथेली         पर   सुलगाना,    हम     को    खूब    आता      है


दिल  में    घाव  छुपे   है   उतने,        जितने    तारे       आसमान      में
और्रों के   घाव  भर     देना,    खुशियाँ  बिखराना हम  को   खूब आता है


आह    उठे   जब    भी     दिल  में,      हम     हंस  कर    उसे   छुपा  जाते  
अरे ये   तो  ख़ुशी  के  आंसू   है,  ये  बहाना,   हम   को      खूब   आता   है


गम     और      तनहाइयाँ        ही   तो       अपने     सच्चे     साथी   है
और      साथियों    का  साथ    निभाना,   हम   को   खूब    आता      है  


ईश्वर   ने    जो   हमे    दिया   वो    सिर्फ   हमारा    ही   तो    नहीं   है 
मिल   बाँट   कर    सब   संग    खाना ,  हम    को    खूब      आता    है