Tuesday 4 October 2011

मेरे बच्चे मेरे क्रिटिक्स

मैं जब भी कोई कविता लिखती हूँ  तो वो ठीक बनी या नहीं ये जानने के लिए बच्चों को कविता सुना  कर उनकी 
प्रतिक्रिया से अंदाजा लगाने की कोशिश करती हूँ के सब को पसंद आएगी या नहीं,सच  जानियेगा वो बड़ी जांच -परख करते है और काफी दोष निकलते है,कई सलाह भी देते है यहाँ ये ठीक नहीं,ऐसे लिखो,ये हटा दो,उनकी 
मुझे दी जाने वाली सलाह और कुछ अपनी कल्पना से मैं ये ये कविता लिखने की कोशिश की है,कविता का शीर्षक है. 

मेरे बच्चे मेरे क्रिटिक्स 

 हर कविता में एक नयापन चाहते है श्रोता,फिर हृदय-पटल पर उसे स्थान दे पाते  है श्रोता!
कहा कवि ने एक ताज़ी कविता को लिखकर, अभी-२ लिखी है जरा डालिए तो एक नज़र !!
काम अभी तो बहुत है, कल परसों सुन लेगे,कम करते हो गलतियां अब तो,उँगलियों पर गिन देगे!
फिर  बैठ कर आराम से गलतियां सुधर लेना,जहाँ -२ हम कहे दो चार नए शब्द भी ड़ाल  देना!!
 एक कमी और है आप में, कोमा, फुलस्टाप  कम लगते हो जो मन में आये बस लिखते ही जाते हो!
जरा तो पढने वालों के बारे में सोचा कीजिये, कविता पढने वालों पर प्लीज़ इतना जुल्म न कीजिये!! 
कविता पढने में हमे आनन्द भी तो  आना चाहिए,जो रोचक/मनभावन हो वहीँ विषय उठाना चाहिए!
कविता अगर न भाये तो आखिर कब तक सुन पायेगे,बना कोई न कोई बहाना इधर-उधर हो जायेगे!!
अरे अधिक निराश नहीं होना,कभी-2 ठीक भी लिखते हो,कुछ कविताएं उम्दा है कुछ अच्छे  गीत भी लिखते हो
कुछ कथा/साहित्य रोज पढ़ा कीजिये उससे बढ़ता ज्ञान है,करत करत अभ्यास के ही जड़मति होत सुजान है!!
लिखते हुए आप को अभी तो   दिन  हुये ४ है,व्यर्थ   की  चिन्ता करो  नहीं  चिन्ता करना बेकार  है!
आगे अब क्या कहे आप खुद ही समझदार है,आप ने पूछा इस लिए हम ने किये व्यक्त विचार है!!