Saturday 19 November 2011

नारी

रामायण से महाभारत तक
हर युग में नारी की एक ही कहानी है, 
विचित्र उसकी व्यथा,
विचित्र उसकी जिंदगानी है |

कभी खेल में जीती जाती है.
कभी जुए में हारी जाती है |
निज स्वाभिमान को खोजती,
अनल सी जलती जाती है,
पृथा सी हर कष्ट झेले जाती है|

क्यूँ नारी को ही अग्नि-परीक्षा देनी है पड़ती,
क्यूँ नारी ही प्रश्न चिन्ह पर पाई जाती है |
दुर्गा सी पूजी जाने वाली, लक्ष्मी सी मर्यादित,
लहू ह्रदय का दे संतानों को पोषा नारी ने,
नर से बढ़ कर कार्य किये नारी ने
फिर भी क्यूँ हाशिये पे पाई जाती है |

नर जब होता हतास
स्त्री ही पूर्णता लाती जीवन में,
नर हो जब निराश
स्त्री ही आत्मीयता दर्शाती जीवन में,
फिर भी सामग्री यह विलाशिता की क्यूँ समझी जाती है |

जाग रहा अब समाज,
मानसिकता पुरुषों को भी बदलनी होगी,
सहचरी वो जीवन की,
सन्मान दे स्तिथियाँ भी बदलनी होंगी,
चरितार्थ करना होगा,
यामा की परिभाषा कैसे नयी बनाई जाती है |
( सुरेश चौधरी  )