Saturday 26 November 2011

जिंदगी

आज फिर तेरे एक शुष्क पहलु  को देखा जिंदगी 
अश्रु-जल आँखों में   थे, बहने  से  रोका  जिंदगी  

हर इंसान की उम्मीद को, तू क्यूँ देती धोका जिंदगी?
क्यूँ  तुझे  हर कोई,  अच्छा   लगे   है रोता,  जिंदगी ?

क्यूँ तू  इतनी कठोर   है,पत्थर  सी  लगती जिंदगी ?
क्यूँ कोई   स्नेह -अंकुर  तुझ  में   ना  फुटा जिंदगी ?

हर  क्षण    ,हर   पल   तू   दर्द   सब     को   दे   रही
काश ,कभी   कोई तेरा   अपना    भी  रोता   जिंदगी 

सदा बन ,कराल-कालिका तू मृत्यु   का    नर्तन   करे
काश  कोई  शिव आ  के तुझ   को  रोक   लेता जिंदगी