Friday 10 February 2012

वो कभी






वो कभी अपना ,कभी अजनबी सा लगा 
लगा ख्वाब कभी,तो कभी यकीं सा लगा

उस को  देखते  ही  मर  मिटे  थे  हम तो 
हद है के वो  फिर  भी  जिंदगी  सा  लगा

कभी लगा के सागर हो वो गम्भीरता का 
और   कभी    सिर्फ  दिल्लगी  सा   लगा  

कभी    तो     सांस    सांस    जीया   उसे 
और    कभी    बीती  जिंदगी   सा   लगा  

उस   के  साए  में  सो   गए    हम  कभी 
और   कभी  धुप  वो  तीखी   सा    लगा 

कभी पाकर लगा उसे, पा ली कायनात सारी
और कभी वो हाथ से रेत फिसलती सा लगा

उस की आँखों में उतर कर गुम हो गए हम 
कभी वो झील सा  तो  कभी  नदी  सा लगा

(अवन्ती सिंह)


29 comments:

  1. कभी तो सांस सांस जीया उसे
    और कभी बीती जिंदगी सा लगा

    बहुत सुन्दर अवंति जी...

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  2. अति सुन्दर !!
    kalamdaan.blogspot.in

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  3. waah kyaa baat hai!!!!!!
    :-)
    kabhee lagaa kinaaraa aa gayaa
    kabhee gahre paanee mein doobne lagaa

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  4. निरंतर खुद को खोजती रहती हूँ
    kabhee paa letee hoon
    kabhee kho detee hoon

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  5. कभी तो सांस सांस जीया उसे
    और कभी बीती जिंदगी सा लगा

    उस के साए में सो गए हम कभी
    और कभी धुप वो तीखी सा लगा

    बहुत खुबसूरत शेर हैं......शानदार ।

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  6. बहुत सुन्दर अवंति जी|

    उस के साए में सो गए हम कभी
    और कभी धुप वो तीखी सा लगा

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  7. बहुत खूब अंजलि जी ,,
    कभी -कभी कोई अपना भी अंजाना सा लगता है..
    बहुत ही बेहतरीन रचना है...

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  8. बहुत बढ़िया प्रस्तुति
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  9. कभी पाकर लगा उसे, पा ली कायनात सारी
    और कभी वो हाथ से रेत फिसलती सा लगा

    बेहतरीन पंक्तियाँ।

    सादर

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  10. कभी पाकर लगा उसे, पा ली कायनात सारी
    और कभी वो हाथ से रेत फिसलती सा लगा.... बहुत-बहुत ही अच्छी भावपूर्ण रचनाये है......

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  11. बहुत सुन्दर रचना, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति , बधाई.

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  12. कभी तो सांस सांस जीया उसे
    और कभी बीती जिंदगी सा लगा
    बहुत अच्छा प्रयोग।
    ग़ज़ल अच्छी लगी। मन में इसके शे’र घर कर गए।

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  13. भावपूर्ण रचना।

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  14. लाजबाब प्रस्तुतीकरण..

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  15. बहुत खुबसूरत शेर ......

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  16. लाजबाब भावपूर्ण रचना..

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  17. वो कभी अपना ,कभी अजनबी सा लगा
    लगा ख्वाब कभी,तो कभी यकीं सा लगा.....
    कभी पाकर लगा उसे, पा ली कायनात सारी
    और कभी वो हाथ से रेत फिसलती सा लगा....
    वाह अवन्तिजी मज़ा आ गया ...बहुत खूब !

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