मन चंचल है , चपल है, चलायमान है, अधीर है
जीत जाता अधिकाँश युद्ध , ये ऐसा रणवीर है
रोज नया कुछ पाने की इच्छाए इसकी बढती जाती है
बुद्धि, इसकी देख हरकतें ,कसमसाती है चिल्लाती है
पर ये है स्वार्थ का पुतला,इस को किसी की पीर नहीं है
जीत इसे काबू में कर ले , कोई भी ऐसा वीर नहीं है
बड़े बड़े योगी जनों को ये ऊँगली पर नाच नचाता है
तोड़ के लोगों के व्रत -संकल्प ये अट्टहास लगता है
जो कहे के मन को जीत लिया, ये उसी को मुंह की खिलाता है
महाविजय्यी ,महा योद्धाओं को ये चारों खाने चित कर जाता है
इसे पराजित कर लेने का कभी भी करो गुमान नहीं
ये काम असम्भव है बिलकुल , हम इन्सां है, भगवान नहीं
जीत नहीं सकते गर इस को, तो परिवर्तित कर दें इसकी राहें
इच्छाएं मारे से मरे ना तो आओ बदल दें हम मन की चाहें
हे मन तू ईश्वर में खो जा, तू उस का रूप निहारा कर
तू उस के आगे नाचा कर, और हर दम उसे पुकारा कर
कर के पुण्य कार्य,सद्कार्य तू , दुखियों के दुःख निवारा कर
सब व्यसन त्याग दे,आज अभी ,बस प्रभु प्रेम का नशा गवांरा कर.
पुरानी कविता
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(अवन्ती सिंह)
मन से बड़ा न ठग कोउ रे..
ReplyDeleteहे मन तू ईश्वर में खो जा, तू उस का रूप निहारा कर
ReplyDeleteतू उस के आगे नचा कर, और हर दम उसे पुकारा कर
बहुत ही खूबसूरत!
सादर
मन तो मन है निरंतर,चलता रहता
ReplyDeleteमन निर्मल
मन शीतल
मन निश्चल
मन पावन
मन हंसता
मन रोता
मन सोचता
मन कहता
मन स्वच्छंद
मन चंचल
मन भावुक
मन अधीर
मन कभी
चुप ना रहता
ना कभी ठहरता
कुछ ना कुछ
करता रहता
मन तो मन है
निरंतर चलता
रहता
09—03-2011
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteबहूत हि सुंदर रचना है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 13-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
समय के साथ संवाद करती हुई आपकी यह प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "भीष्म साहनी" पर आपका बेशब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति।
मन चंचल है , चपल है, चलायमान है, अधीर है
ReplyDeleteजीत जाता अधिकाँश युद्ध , ये ऐसा रणवीर है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
सच है मन बहुत चंचल है ...... गहरे भाव संजोये हैं....
ReplyDeleteये ऐसा रणवीर है
ReplyDeletebahut..satik he...aabhar..
chanchal mann....
ReplyDeleteBEHATAREEN RACHNA ....BADHAI AWANTI JI.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक....मन को मार कर नहीं उसे जानकार ही जीता जा सकता है ।
ReplyDeleteइच्छाएं ही दुखों का मूल हैं। इसकी समझ मात्र से इश्वरत्व की प्राप्ति की दिशा में आधा सफर तय हुआ समझिए।
ReplyDeleteजीत नहीं सकते गर इस को, तो परिवर्तित कर दें इसकी राहें
ReplyDeleteइच्छाएं मारे से मरे ना तो आओ बदल दें हम मन की चाहें
काव्य के माध्यम से मन की चंचलता की अच्छी व्याख्या।
इच्छाओं का शमन जरूरी है.
ReplyDeleteकाव्यगत विशेषताओं को समाहित किए सुंदर भावपूर्ण रचना ..
ReplyDeleteजीत नहीं सकते गर इस को, तो परिवर्तित कर दें इसकी राहें
इच्छाएं मारे से मरे ना तो आओ बदल दें हम मन की चाहें
हे मन तू ईश्वर में खो जा, तू उस का रूप निहारा कर
ReplyDeleteतू उस के आगे नाचा कर, और हर दम उसे पुकारा कर
कर के पुण्य कार्य,सद्कार्य तू , दुखियों के दुःख निवारा कर
सब व्यसन त्याग दे,आज अभी ,बस प्रभु प्रेम का नशा गवांरा कर.
ऐसी रचनायें कभी पुरानी नहीं होती.सुंदर व सदाबहार रचना....
मन की अनेक व्याख्याएं रोचक लगीं !
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