Sunday, 12 February 2012

मन चंचल है

मन चंचल है ,  चपल है,   चलायमान है,   अधीर है 
जीत जाता अधिकाँश  युद्ध ,  ये   ऐसा   रणवीर  है 

रोज नया कुछ पाने की इच्छाए इसकी बढती जाती है 
बुद्धि, इसकी  देख हरकतें ,कसमसाती है  चिल्लाती है

पर ये है स्वार्थ का पुतला,इस को किसी की पीर नहीं है 
जीत इसे काबू में  कर ले ,  कोई भी  ऐसा  वीर  नहीं  है 

बड़े बड़े योगी  जनों   को ये ऊँगली   पर  नाच नचाता है 
तोड़  के   लोगों   के  व्रत -संकल्प  ये अट्टहास लगता है 

जो कहे के मन को जीत लिया, ये उसी  को  मुंह की खिलाता है 
महाविजय्यी ,महा योद्धाओं को ये चारों खाने चित कर जाता है 

इसे पराजित  कर   लेने   का   कभी   भी   करो   गुमान   नहीं 
ये काम असम्भव है बिलकुल ,   हम   इन्सां है,  भगवान नहीं 

जीत नहीं सकते गर इस को, तो परिवर्तित कर दें इसकी  राहें 
इच्छाएं मारे से मरे ना तो आओ बदल दें हम   मन  की   चाहें 

हे मन तू   ईश्वर   में खो जा,    तू    उस   का   रूप निहारा कर 
तू उस के आगे    नाचा  कर,    और  हर  दम  उसे   पुकारा  कर 

कर के पुण्य कार्य,सद्कार्य तू ,   दुखियों   के   दुःख   निवारा   कर 
सब व्यसन त्याग दे,आज अभी ,बस प्रभु प्रेम का नशा गवांरा कर.

पुरानी कविता
========= 

(अवन्ती सिंह)


20 comments:

  1. मन से बड़ा न ठग कोउ रे..

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  2. हे मन तू ईश्वर में खो जा, तू उस का रूप निहारा कर
    तू उस के आगे नचा कर, और हर दम उसे पुकारा कर

    बहुत ही खूबसूरत!


    सादर

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  3. मन तो मन है निरंतर,चलता रहता


    मन निर्मल
    मन शीतल
    मन निश्चल
    मन पावन
    मन हंसता
    मन रोता
    मन सोचता
    मन कहता
    मन स्वच्छंद
    मन चंचल
    मन भावुक
    मन अधीर
    मन कभी
    चुप ना रहता
    ना कभी ठहरता
    कुछ ना कुछ
    करता रहता
    मन तो मन है
    निरंतर चलता
    रहता
    09—03-2011

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  4. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  5. बहूत हि सुंदर रचना है ...

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 13-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  7. समय के साथ संवाद करती हुई आपकी यह प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "भीष्म साहनी" पर आपका बेशब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  8. सुंदर रचना।
    गहरी अभिव्‍यक्ति।

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  9. मन चंचल है , चपल है, चलायमान है, अधीर है
    जीत जाता अधिकाँश युद्ध , ये ऐसा रणवीर है

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  10. सच है मन बहुत चंचल है ...... गहरे भाव संजोये हैं....

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  11. ये ऐसा रणवीर है

    bahut..satik he...aabhar..

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  12. BEHATAREEN RACHNA ....BADHAI AWANTI JI.

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  13. बहुत सुन्दर और सार्थक....मन को मार कर नहीं उसे जानकार ही जीता जा सकता है ।

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  14. इच्छाएं ही दुखों का मूल हैं। इसकी समझ मात्र से इश्वरत्व की प्राप्ति की दिशा में आधा सफर तय हुआ समझिए।

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  15. जीत नहीं सकते गर इस को, तो परिवर्तित कर दें इसकी राहें
    इच्छाएं मारे से मरे ना तो आओ बदल दें हम मन की चाहें

    काव्य के माध्यम से मन की चंचलता की अच्छी व्याख्या।

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  16. इच्छाओं का शमन जरूरी है.

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  17. काव्यगत विशेषताओं को समाहित किए सुंदर भावपूर्ण रचना ..
    जीत नहीं सकते गर इस को, तो परिवर्तित कर दें इसकी राहें
    इच्छाएं मारे से मरे ना तो आओ बदल दें हम मन की चाहें

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  18. हे मन तू ईश्वर में खो जा, तू उस का रूप निहारा कर
    तू उस के आगे नाचा कर, और हर दम उसे पुकारा कर

    कर के पुण्य कार्य,सद्कार्य तू , दुखियों के दुःख निवारा कर
    सब व्यसन त्याग दे,आज अभी ,बस प्रभु प्रेम का नशा गवांरा कर.

    ऐसी रचनायें कभी पुरानी नहीं होती.सुंदर व सदाबहार रचना....

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  19. मन की अनेक व्याख्याएं रोचक लगीं !

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