Friday 14 October 2011

कविता

कविता, ये    कविता   आखिर  क्या  होती  है !
तेरे और मेरे जीवन की इसमें छुपी व्यथा होती है!!
कभी तो हंसती, मुस्काती, कभी ये बार बार रोती है!
पावँ में  इस के कभी है छाले,कभी रिसते घाव  धोती है!!
कविता, ये  कविता आखिर क्या होती है ..............
मन की तड़प  छुपा लेती और बीज ख़ुशी के ये बोती है!
सपन सलोने हम को देती,पर क्या कभी खुद भी सोती है!!
कविता,  ये  कविता आखिर क्या  होती है............ 
उम्मीदे न टूटे हमारी, सदा ये यत्न प्रयत्न करती  है !
न उम्मीदी की कई गठरियाँ, ये चुपके चुपके  ढ़ोती है!! 
कविता, ये  कविता आखिर  क्या होती है.....

( अवन्ती सिंह )
 
 

 

मिर्ज़ा ग़ालिब

दर्द से मेरे है ,तुझे को     बेकरारी हाय हाय!
 क्या हुई जालिम तेरी गफलत सआरी हाय हाय!! 
क्यूँ मेरी गम खारगी का तुझ को आया था ख्याल!
दुश्मनी अपनी  थी मेरी दोस्तदारी हाय हाय !!
उम्र भर का तू ने पयमाने वफा बंधा तो क्या !
उम्र को भी तो नहीं है  पायेदारी  हाय  हाय !!
जहर लगती है  मुझे,  आबो  हवाए   जिन्दगी!
यानि तुझ से थी इसे नासाजदारी  हाय हाय!!
शर्मे रुसवाई से जा छुपना जाकर नकाबे ख़ाक में !
खत्म है  उल्फत की तुझ पर पर्दादारी हाय हाय!!
ख़ाक में नामुसे पयमाने मोहोब्बत मिल गए!
उठ गयी दुनिया से राहो रस्मेदारी हाय हाय!!
इश्क ने पकड़ा न था ग़ालिब अभी वहशत का रंग!
रह गया जो दिल में कुछ  सोकेखारी   हाय हाय !!
( मिर्ज़ा ग़ालिब ) 



 

पतझड़

क्यूँ हर तरफ  अब पतझड़ ही पतझड़ है !
आवाजें सब खामोश है,हर पंछी अब बेपर है !! 
क्यूँ ये ज़मीं इतनी शुष्क और बंज़र है !
जाये नज़र जहाँ तक भी, वीरान सारा मंज़र है!!
कसमसा कर टहनियां, टूटती है,गिर जाती है!
देख कर भी ये तमाशा ,पेड़ खामोश  है,बेबस है !!
एक डगर से कोई राहगीर अब गुज़रता ही नहीं!
छावं बची नहीं जरा भी,बस तपिश है जैसे खंज़र है!!
एक हरा तिनका भी उम्मीद का दीखता नहीं!
करे कैसे सब्र जब छाया हर तरफ ही कहर है !!
ओ खुदा अब तो लौटा दो ,मौसम ऐ बहार को !
हर दर से मायूस है हम, बस अब तुझ पे नज़र है!!
अवन्ती सिंह