Friday 16 December 2011

अत्याचार

जब मैं ने रचनाये लिखना शुरू नहीं किया था ,उससे पहले भी मन में कविताये नृत्य किया करती थी पर काम में इतना व्यस्त रहती थी के खुद के लिए भी वक्त नहीं निकाल पाती थी ,फिर कविताये लिखना तो बड़ी दूर की कोडी थी,पर जब ये अहसास हुआ के इन्हें यूँ ही बेकार नहीं जाने देना चाहिए लिखना शुरू करना चाहिए तो उस वक्त की अपनी भावनाओ को आप सब के साथ एक कविता के माध्यम से बाँट रही हूँ ......

                      
अब मैं इन कविताओ पर अत्याचार नहीं कर सकती हूँ 
इन को ऐसे व्यर्थ  और  बेकार नहीं  कर  सकती  हूँ
कई वर्षो तक मैं ने इन्हें कागज़ नसीब होने न दिया
क्रमबद्ध इन्हें किया नहीं,सपना कोई संजोने न दिया 
लेकिन अब मैं ये सौतेला व्यवहार नहीं कर सकती हूँ 
अब मैं इन  कविताओ पर.................
नव जीवन के अंकुर अब इन कविताओ से फुटेगे
छंद -बंध की परिधि में,शब्दों का नृत्य चलेगा अब 
भावनाओ के रंगों  से  हर पन्ना   खूब   सजेगा     अब 
इन्तजार कुछ दिन तो क्या,पल दो चार नहीं कर सकती हूँ  
अब मैं इन  कविताओ पर................
हृदय -वीणा की  धुन  पर अब   कविता  मल्हार    सुनायेंगी
गीत  ख़ुशी  से  नाचेगे, गजले  थम    थम    मुस्कायेगीं 
अब अपने मन  से,  मैं  अधिक तकरार नहीं कर सकती हूँ 
अब मैं इन कविताओ पर ...............