Friday 10 February 2012

वो कभी






वो कभी अपना ,कभी अजनबी सा लगा 
लगा ख्वाब कभी,तो कभी यकीं सा लगा

उस को  देखते  ही  मर  मिटे  थे  हम तो 
हद है के वो  फिर  भी  जिंदगी  सा  लगा

कभी लगा के सागर हो वो गम्भीरता का 
और   कभी    सिर्फ  दिल्लगी  सा   लगा  

कभी    तो     सांस    सांस    जीया   उसे 
और    कभी    बीती  जिंदगी   सा   लगा  

उस   के  साए  में  सो   गए    हम  कभी 
और   कभी  धुप  वो  तीखी   सा    लगा 

कभी पाकर लगा उसे, पा ली कायनात सारी
और कभी वो हाथ से रेत फिसलती सा लगा

उस की आँखों में उतर कर गुम हो गए हम 
कभी वो झील सा  तो  कभी  नदी  सा लगा

(अवन्ती सिंह)