Tuesday 11 October 2011

मित्रता
आओ आकर मिल बैठे हम,शिकवे गिले भूल जाए हम
आत्मीयता का वरण करे,देहाभिमान को भुलाए हम
ये सनेह की डोरी,प्रेम के बंधन, क्या इन का कुछ मोल नहीं?
मेत्रि और मित्रता जैसा जग मे होता कुछ और नहीं
हे मित्र मित्रता मे होता, कुछ भी अनमेल,बेमेल नहीं
ये सनेह और आत्ममीयता,सच मे है,ये कोई खेल नहीं
नाराज़गी के इस हिम गिरी को, उश्मित सनेह से पिघलाए हम
हम मित्र थे मित्र रहेगे सदा, आओ ये कसम उठाए हम
आत्मीयता का वरण करे,देहाभिमान को भुलाए हम
             मुख़्तसर नज्में 

                      १

हाँ तुम एक मंदिर बनवा लो 
और तुम एक मस्जिद बनवा लो 
क्यूंकि तुम्हारे दिल  के अंधेरों से
अल्लाह , भगवान्  वो  जो  है 
ऊब   चूका है .........
उस को नया मकान चाहिए

                     २

बंदूकों, तलवारों, छुरियों को 
कुछ दिन की छुट्टी दे दें 
बारूदों के ढेर छुपा  दें 
दूर  कहीं तहखानो में
मुस्कानों  के गहने
फिर एक बार निकाले
शायद लौट ही 
आयें बहारें 
क्या ख्याल है?
करके देखें?
( अख्तर किदवई  )