Friday 25 November 2011

तैयार रहो




बहुत   कठिन    सफ़र   पे   जाना   है ,    तैयार    रहो  
कई पथ्थरों   ने   राह    में    आना   है    तैयार    रहो

 अभी    चाहो   तो   कदम   पीछे  हटा   भी सकते    हो 
चल      पड़ोगे तो    मंजिल  को  पाना   है    तैयार  रहो

रुके  तो   मन  पछतायेगा,  कोसोगे    सदा    खुद    को  
मंजिल   पर पहुचे  तो ठोकर में जमाना  है   तैयार  रहो 




              नव-जीवन 

इन    सूखे      पत्तों      की    हरियाली      अब     खो   चुकी    है 
अब     कुछ      दिन    और      बचे      है     इन       के         पास

कुछ      दिनों     में       ये     सुखेगे    ,   टूटेगे  ,   गिर      जायेगे 
क्या      फिर      ये    परम        शांति           को       पा       जायेगे?

या  जमीन के किसी   कोने   में    पड़े      चिखेगें  ,    चिल्लायेगे   के  
हमे   तो   अभी     भी   पेड    की   वो    कोमल      डाली      भाती   है

डाल   पर   वापस  जा  लगें  ,  ये   इच्छा    रोज   बढती   जाती   है\
अब कौन समझाये  इन   पत्तों को, के   सृष्टि के   नियम   से चलो

टूटने के बाद ,पहले धरती में मिलो,गलों और फिर किसी नव-अंकुर 
की नसों में  बनके  उर्जा बहों , उस   के प्राणों  का  एक  हिस्सा  बनो

तब कहीं  तुम   दोबारा  पत्ते    बनने     का  अवसर   पा    सकते    हो 
वरना तो यूँ ही इस  कोने  में पड़े पड़े बस  रो सकते हो चिल्ला सकते हो.