आज फिर तेरे एक शुष्क पहलु को देखा जिंदगी!
अश्रु जल आँखों में था, बहने से रोका जिंदगी !!
क्यूँ हर इन्सान तुझे अच्छा लगे है रोता, जिंदगी !
देती क्यूँ हर इंसा की उम्मीद को तू धोखा ,जिंदगी!!
क्यों तू इतनी कठोर है ,पत्थर सी है तू जिंदगी!
क्यों कोई सनेह अंकुर तुझ में ना फुटा जिंदगी!!
हर पल हर छन दर्द तू सबको ही देती जा रही!
काश के तेरा कोई अपना भी रोता, जिंदगी!!
बन कर कराल कालिका, तू मौत का नृत्य करे!
कोई शिव आकर , काश तुझे रोक लेता जिंदगी !!
kisi ke roke ruktee nahee zindgee
ReplyDeletewoh chaahtaa tab tak rahtee hai zindgee
प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteहर पल हर छन दर्द तू सबको ही देती जा रही!
ReplyDeleteकाश के तेरा कोई अपना भी रोता, जिंदगी!! .................वाह बहुत खूब
डबडबाई आँखों से न मुझे बहलाओ,जिंदगी
टूटते तारे का दर्द मैं भी जानती हूँ ,जिंदगी |...अनु
आज हर ब्लॉग पर प्रेम के नारे लग रहे है...आपकी ये दर्द भरी रचना दिल को छू गयी..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ..
jindagi to aisy hi hai
ReplyDeletekabhi khushi kabhi gam....
bahut hi behtarin rachana hai...
हर पल हर छन दर्द तू सबको ही देती जा रही!
ReplyDeleteकाश के तेरा कोई अपना भी रोता, जिंदगी!!
bahut khoob lajavab sher
rachana
जिन्दगी हँसाती है, रुलाती है, सिखाती है, बहलाती है..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति|
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ...
ReplyDeleteकोई शिव आकर , काश तुझे रोक लेता जिंदगी !!
ReplyDeleteतब शायद जिंदगी जिंदगी नहीं रहती....
wah re jindagi...:))
ReplyDeleteक्यों तू इतनी कठोर है ,पत्थर सी है तू जिंदगी!
ReplyDeleteक्यों कोई सनेह अंकुर तुझ में ना फुटा जिंदगी!! ..
जिंदगी को इस नज़र से देखना भी अच्छा लगा .... पर ये इतनी भी कठोर नहीं ...
रुंधे गले सी ज़िन्दगी ........!
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