Tuesday, 14 February 2012

जिंदगी

 

आज फिर तेरे एक शुष्क पहलु को  देखा  जिंदगी!
अश्रु जल आँखों में  था,  बहने  से  रोका  जिंदगी !!

क्यूँ हर इन्सान तुझे अच्छा लगे है रोता,  जिंदगी !
देती क्यूँ हर इंसा की उम्मीद को तू धोखा ,जिंदगी!!

क्यों तू इतनी कठोर है ,पत्थर  सी  है  तू   जिंदगी!
क्यों कोई सनेह अंकुर तुझ में ना फुटा    जिंदगी!! 

हर पल   हर  छन  दर्द  तू  सबको ही देती जा रही!
काश के   तेरा   कोई   अपना  भी  रोता,  जिंदगी!! 

बन  कर  कराल  कालिका, तू  मौत का नृत्य करे!
कोई  शिव  आकर , काश तुझे रोक लेता जिंदगी !! 

13 comments:

  1. kisi ke roke ruktee nahee zindgee
    woh chaahtaa tab tak rahtee hai zindgee

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  2. प्रभावशाली रचना.....

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  3. हर पल हर छन दर्द तू सबको ही देती जा रही!
    काश के तेरा कोई अपना भी रोता, जिंदगी!! .................वाह बहुत खूब


    डबडबाई आँखों से न मुझे बहलाओ,जिंदगी
    टूटते तारे का दर्द मैं भी जानती हूँ ,जिंदगी |...अनु

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  4. आज हर ब्लॉग पर प्रेम के नारे लग रहे है...आपकी ये दर्द भरी रचना दिल को छू गयी..

    शुभकामनाएँ..

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  5. jindagi to aisy hi hai
    kabhi khushi kabhi gam....
    bahut hi behtarin rachana hai...

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  6. हर पल हर छन दर्द तू सबको ही देती जा रही!
    काश के तेरा कोई अपना भी रोता, जिंदगी!!
    bahut khoob lajavab sher
    rachana

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  7. जिन्दगी हँसाती है, रुलाती है, सिखाती है, बहलाती है..

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  8. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति|

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  9. वाह ...बहुत खूब ...

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  10. कोई शिव आकर , काश तुझे रोक लेता जिंदगी !!


    तब शायद जिंदगी जिंदगी नहीं रहती....

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  11. क्यों तू इतनी कठोर है ,पत्थर सी है तू जिंदगी!
    क्यों कोई सनेह अंकुर तुझ में ना फुटा जिंदगी!! ..

    जिंदगी को इस नज़र से देखना भी अच्छा लगा .... पर ये इतनी भी कठोर नहीं ...

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  12. रुंधे गले सी ज़िन्दगी ........!

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