आंसूओसे यह अजीबसा रिश्ता कैसा -
मेरी हर आह्से बेसाख्ता जुड़े रहते हैं
ज़रा सी टीस दरीचोंसे झांकती है जब
मरहम बनकर उसे ढकने को निकल पड़ते हैं...
जब कभी चाहूं मैं रोकना पीना उनको-
हर हरी चोट को नासूर बना देते हैं -
जमकर बर्फ हो गए उन लम्होंको -
अपनी बेबाक तपिशसे जिला देते हैं ...
फिर तड़प का वही सिलसिला रवां करके
किसी मासूम की आँखों से ताकते मुझको-
मानो मेरा दर्द, मेरी तक्लीफ देखकर वह -
कुछ शर्मसार से निगाहोंको झुका लेते हैं.
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सरस दरबारी
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बहुत खूबसूरत रचना.
ReplyDeleteसांझा करने का शुक्रिया अवंति जी..
बहुत खूबसूरत रचना............
ReplyDeleteसांझा करने का शुक्रिया अवंति जी|
गहरे भाव।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
मानो मेरा दर्द, मेरी तक्लीफ देखकर वह -
ReplyDeleteकुछ शर्मसार से निगाहोंको झुका लेते हैं.
शर्मसार निगाहों का झुकना कविता में चमत्कार पैदा कर गया ...!
beautiful.
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन के साथ उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
ReplyDeleteज़रा सी टीस दरीचोंसे झांकती है जब
ReplyDeleteमरहम बनकर उसे ढकने को निकल पड़ते हैं...
behad prabhavshali rachna...........
दिल की गहराई तक उतरती रचना !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...!
आभार !
बहुत ही खूबसूरत कविता।
ReplyDeleteसादर
बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल है....शानदार ।
ReplyDeleteमानो मेरा दर्द, मेरी तक्लीफ देखकर वह -
ReplyDeleteकुछ शर्मसार से निगाहोंको झुका लेते हैं.
... बहुत सुंदर पंक्तियाँ...रचना दिल को छू जाती है..बहुत सुंदर
जिंदगी का संदेश लिये हुए है आपकी रचना....अवंति जी|
ReplyDeleteशानदार रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteअतिसुन्दर.....बेहतरीन प्रस्तुति.....
ReplyDeleteकृपया इसे भी पढ़े-
नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)
bahut shandar prstuti............aabhar
ReplyDeleteज़रा सी टीस दरीचोंसे झांकती है जब
ReplyDeleteमरहम बनकर उसे ढकने को निकल पड़ते हैं...
वाह ॥सुंदर पंक्तियाँ
bahut khoob
ReplyDeleteआंसुओं की प्रवृति ही ऐसी है ... हर हाल में साथ देते हैं ...
ReplyDeleteलाजवाब लिखा है ...
अवन्तिजी को रचना साझा करने के लिए और आप सबको उसे सराहनेके लिए बहुत बहुत आभार !!!!
ReplyDeleteमेरे नए ब्लॉग पर आप आमंत्रित हैं http://merehissekidhoop-saras.blogspot.in