Thursday, 16 February 2012

रिश्ता


 



आंसूओसे यह अजीबसा रिश्ता कैसा -
मेरी हर आह्से बेसाख्ता जुड़े रहते हैं
ज़रा सी टीस दरीचोंसे झांकती है जब

मरहम बनकर उसे ढकने को निकल पड़ते हैं...
जब कभी चाहूं मैं रोकना पीना उनको-
हर हरी चोट को नासूर बना देते हैं -
जमकर बर्फ हो गए उन लम्होंको -
अपनी बेबाक तपिशसे जिला देते हैं ...
फिर तड़प का वही सिलसिला रवां करके
किसी मासूम की आँखों से ताकते मुझको-
मानो मेरा दर्द, मेरी तक्लीफ देखकर वह -
कुछ शर्मसार से निगाहोंको झुका लेते हैं.

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सरस दरबारी 
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merehissekidhoop-saras.blogspot.com


19 comments:

  1. बहुत खूबसूरत रचना.
    सांझा करने का शुक्रिया अवंति जी..

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  2. बहुत खूबसूरत रचना............
    सांझा करने का शुक्रिया अवंति जी|

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  3. गहरे भाव।
    सुंदर रचना।

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  4. मानो मेरा दर्द, मेरी तक्लीफ देखकर वह -
    कुछ शर्मसार से निगाहोंको झुका लेते हैं.

    शर्मसार निगाहों का झुकना कविता में चमत्कार पैदा कर गया ...!

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  5. अनुपम भाव संयोजन के साथ उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ।

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  6. ज़रा सी टीस दरीचोंसे झांकती है जब
    मरहम बनकर उसे ढकने को निकल पड़ते हैं...

    behad prabhavshali rachna...........

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  7. दिल की गहराई तक उतरती रचना !
    बहुत सुन्दर ...!
    आभार !

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  8. बहुत ही खूबसूरत कविता।


    सादर

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  9. बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल है....शानदार ।

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  10. मानो मेरा दर्द, मेरी तक्लीफ देखकर वह -
    कुछ शर्मसार से निगाहोंको झुका लेते हैं.

    ... बहुत सुंदर पंक्तियाँ...रचना दिल को छू जाती है..बहुत सुंदर

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  11. जिंदगी का संदेश लिये हुए है आपकी रचना....अवंति जी|

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  12. शानदार रचना के लिए बधाई.

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  13. अतिसुन्दर.....बेहतरीन प्रस्तुति.....
    कृपया इसे भी पढ़े-
    नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)

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  14. ज़रा सी टीस दरीचोंसे झांकती है जब
    मरहम बनकर उसे ढकने को निकल पड़ते हैं...

    वाह ॥सुंदर पंक्तियाँ

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  15. आंसुओं की प्रवृति ही ऐसी है ... हर हाल में साथ देते हैं ...
    लाजवाब लिखा है ...

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  16. अवन्तिजी को रचना साझा करने के लिए और आप सबको उसे सराहनेके लिए बहुत बहुत आभार !!!!
    मेरे नए ब्लॉग पर आप आमंत्रित हैं http://merehissekidhoop-saras.blogspot.in

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