Thursday, 6 September 2012

प्रेम और उपासना



एक पुरानी  रचना   (प्रेम और उपासना )

प्रेम और   उपासना   में   बहुत    अधिक  फर्क नहीं  है
बशर्ते के     दोनों      में   पावनता   हो,  पवित्रता  हो

प्रेम    को    उपासना     भी    बनाया   जा  सकता   है
और उपासना को प्रेम भी   बनाया    जा     सकता     है

जिस से प्रेम हो, मन से उस की उपासना भी की जाये 
प्रेम  की पराकाष्ठा   पर   पंहुचा   जा    सकता      है

और जिस की उपासना की जाये यदि उससे प्रेम भी किया जाये
  तो   परम     उपलब्धि      को  प्राप्त     किया    जा  सकता है

कितनी    मिलती     जुलती     है ना    दोनों     ही     बातें ?
प्रेम   में   अगर   वासना ना हो ,और   उपासना  में ईश्वर से
 कुछ   चाहना    ना    हो ,    कुछ    भी    मांगना     ना    हो

तो प्रेम ही     उपासना     है ,और उपासना    ही प्रेम है
नाम है   जुदा   जुदा    पर   अंततः     तो      एक     है  
( अवन्ती सिंह  )





 


14 comments:

  1. अवन्ती जी प्रेम और उपासना दोनों का ही रूप वर्तमान में उच्च कोटि का दीखता नहीं... एक में व्यभिचार घुसा है तो दोसरे में ढोंग

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  2. कितनी मिलती जुलती है ना दोनों ही बातें ?
    प्रेम में अगर वासना ना हो ,और उपासना में ईश्वर से
    कुछ चाहना ना हो , कुछ भी मांगना ना हो


    जी हां बिल्कुल सही कहा है आपने.

    सादर.

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  3. वाह बहुत सुंदर रचना !!

    इसीलिये लगता है
    अब लोग प्रेम का
    मंदिर बना रहे हैं
    किराये पर पंडित
    रखकर उसमें
    शुबह शाम की
    आरती भी रोज
    करवा रहे हैं !

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  4. सुन्दर रचना |

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  5. अवन्तिजी ...प्रेम और उपासना में बस थोडा सा ही फर्क है ....जब इश्वर से प्रेम हो तो उपासना बन जाता है ...और जब मनुष्य से पूर्ण समर्पण वाला प्रेम हो तभी उपासना बन पता है .....

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  6. प्रेम और उपासना में बहुत अधिक फर्क नहीं है
    बशर्ते के दोनों में पावनता हो, पवित्रता हो... मुख्य बात यही है

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  7. समर्पण प्रेम को उपासना बना देता है..

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  8. प्रेम ही प्रेम....

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  9. तो प्रेम ही उपासना है ,और उपासना ही प्रेम है
    नाम है जुदा जुदा पर अंततः तो एक है
    बिल्‍कुल सही कहा है आपने ...

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  10. बेहद सुन्दर , प्रेम को परिभाषित करती हुई...

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  11. उपासन तभी संभव है जब दिल मे प्रेम हो...... सुंदर प्रस्तुति......

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  12. बिकुल सही ..
    इसी पर मुझे याद आया कि 'ख़ाक को बुत और बुत को देवता करता है इश्क, इम्तहान ये है कि बन्दे को खुदा करता है इश्क' .. प्रेम और उपासना अंततः सामान ही हैं ..
    सादर
    मधुरेश

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