एक पुरानी रचना (प्रेम और उपासना )
प्रेम और उपासना में बहुत अधिक फर्क नहीं है
बशर्ते के दोनों में पावनता हो, पवित्रता हो
प्रेम को उपासना भी बनाया जा सकता है
और उपासना को प्रेम भी बनाया जा सकता है
जिस से प्रेम हो, मन से उस की उपासना भी की जाये
प्रेम की पराकाष्ठा पर पंहुचा जा सकता है
और जिस की उपासना की जाये यदि उससे प्रेम भी किया जाये
तो परम उपलब्धि को प्राप्त किया जा सकता है
कितनी मिलती जुलती है ना दोनों ही बातें ?
प्रेम में अगर वासना ना हो ,और उपासना में ईश्वर से
कुछ चाहना ना हो , कुछ भी मांगना ना हो
तो प्रेम ही उपासना है ,और उपासना ही प्रेम है
नाम है जुदा जुदा पर अंततः तो एक है
( अवन्ती सिंह )
अवन्ती जी प्रेम और उपासना दोनों का ही रूप वर्तमान में उच्च कोटि का दीखता नहीं... एक में व्यभिचार घुसा है तो दोसरे में ढोंग
ReplyDeleteकितनी मिलती जुलती है ना दोनों ही बातें ?
ReplyDeleteप्रेम में अगर वासना ना हो ,और उपासना में ईश्वर से
कुछ चाहना ना हो , कुछ भी मांगना ना हो
जी हां बिल्कुल सही कहा है आपने.
सादर.
वाह बहुत सुंदर रचना !!
ReplyDeleteइसीलिये लगता है
अब लोग प्रेम का
मंदिर बना रहे हैं
किराये पर पंडित
रखकर उसमें
शुबह शाम की
आरती भी रोज
करवा रहे हैं !
सुन्दर रचना |
ReplyDeleteअवन्तिजी ...प्रेम और उपासना में बस थोडा सा ही फर्क है ....जब इश्वर से प्रेम हो तो उपासना बन जाता है ...और जब मनुष्य से पूर्ण समर्पण वाला प्रेम हो तभी उपासना बन पता है .....
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ReplyDeleteप्रेम और उपासना में बहुत अधिक फर्क नहीं है
बशर्ते के दोनों में पावनता हो, पवित्रता हो... मुख्य बात यही है
समर्पण प्रेम को उपासना बना देता है..
ReplyDeletebahut pyara :)
ReplyDeletesachchi baat..
प्रेम ही प्रेम....
ReplyDeleteतो प्रेम ही उपासना है ,और उपासना ही प्रेम है
ReplyDeleteनाम है जुदा जुदा पर अंततः तो एक है
बिल्कुल सही कहा है आपने ...
सही कहा आपने
ReplyDeleteबेहद सुन्दर , प्रेम को परिभाषित करती हुई...
ReplyDeleteउपासन तभी संभव है जब दिल मे प्रेम हो...... सुंदर प्रस्तुति......
ReplyDeleteबिकुल सही ..
ReplyDeleteइसी पर मुझे याद आया कि 'ख़ाक को बुत और बुत को देवता करता है इश्क, इम्तहान ये है कि बन्दे को खुदा करता है इश्क' .. प्रेम और उपासना अंततः सामान ही हैं ..
सादर
मधुरेश