Thursday, 29 November 2012

मन के नाजुक और सुंदर पौधे पर ,कल्पना के अनोखे रंगों से सजे शब्द जब मनमोहिनी सुगंध में ओतप्रोत होकर खिलते है और उस के पश्चात विचारों के पंखों को लगा कर  मखमली कागज़ पर हौले से उतर जाते है तब एक कविता निर्मित होती है !

8 comments:

  1. बिलकुल सही अभिव्यक्ति ।।

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  2. बहुत ही सुन्दर बात कही है...
    :-)

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  3. बिलकुल सही। बहुत दिनों बाद आपका पोस्ट दिखा, ख़ुशी हुई आपके वापसी की :)

    सादर
    मधुरेश

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  4. अति सुंदर भाव।
    सादर- देवेंद्र
    मेरी नयी पोस्ट अन्नदेवं,सृष्टि-देवं,पूजयेत संरक्षयेत पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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