Sunday, 2 December 2012

जीवन                                

स्वार्थी लोग
मतलब के रिश्ते
ये ही है  जीवन?

चलायमान  मन
भटकता  फिरे
तकता  रहे औरों
का जीवन

कड़ी मेहनत
तन पे  चिथड़े
दो सुखी रोटी
ये कैसा जीवन ?

रेशम है  तन पर
थाली में पकवान
असंतुष्ट है फिर भी
मन बेईमान,चाहे हमेशा
और उम्दा जीवन !




अवन्ती सिंह















4 comments:

  1. उम्दा रचना
    अरुन शर्मा
    www.arunsblog.in

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  2. बहुत सुंदर ! कम शब्दों में सबकुछ कह दिया !
    ~सादर !!!

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