Tuesday 29 November 2011

तुम को ढूंढा है

हर      सुबह     हर    शाम    तुम   को   ढूंढा है 
 हमने,  उम्र     तमाम      तुम   को     ढूंढा    है 



हर   शहर    की      ख़ाक      छान     मारी     है 
कभी छुप के ,कभी सरे आम   तुम   को  ढूंढा है 



हर फूल,हर कली ,को  बताया  है   हुलिया    तुम्हारा  
चेहरे का हर एक निशाँ ,करके ब्यान ,तुम को ढूंढा है

  

छुपे हो जरुर तुम  किसी  और लोक में, वरना   तो 
ज़मी सारी छानी ,फिर  आसमान पे, तुम को ढूंढा है 

2 comments:

  1. सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति...

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  2. हम उन्हें शहर की
    गलियों में ढूंढ रहे थे
    वो हमारे घर में बैठे
    इंतज़ार कर रहे थे

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