Sunday 11 December 2011

मिल कर ढूंढे

मिल कर ढूंढे  वो   सूरज   जो,   अंतस     में     उजियारा     भर   दे 
अँधियारा  मन का  हर ले  जो,   आत्मा  को  पूर्ण   प्रकाशित  कर दे 


लायें   ढूंढ़  कर   वो   बहारें   जो ,हर  एक   डाली    को      हरित  करें
हर डाली पर सुख  की कलियाँ  हो,   हर   पेड़    संतोष    के    फल  दे 


सागर से कहें ,वो बादल गढ़,  जो   स्नेह    का   जल    बरसा     जाये 
वो स्नेह  बहें   हर  एक  मन में  और   कटुता    को    पिघला    जाये


एक नया चाँद   भी    लाना   है   जो, नव-रश्मियाँ   हम  तक  पहुचाये 
हर मन   में   प्रीत   का   ज्वार   उठे , जग   प्रीत   भवर   में  खो  जाये 













12 comments:

  1. बहुत सुन्दर....
    अच्छी आशावादी प्रस्तुति अवंती जी...

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  2. मिल कर ढूंढे वो सूरज जो, अंतस में उजियारा भर दे
    अँधियारा मन का हर ले जो, आत्मा को पूर्ण प्रकाशित कर दे
    paraaye ko apnaa samajh le
    dard uske kam kar de
    khud sahle usko hansaa de

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  3. सही है जी....
    सागर से कहें,वो बादल गढ़,जो स्नेह का जल बरसा जाये
    वो स्नेह बहें हर एक मन में और कटुता को पिघला जाये।

    लेकिन इतना स्पेस क्यों दिया है जी... लगता है सब कुछ समाहित कर लेना चाहते हो आप...

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  4. लायें ढूंढ़ कर वो बहारें जो ,हर एक डाली को हरित करें
    हर डाली पर सुख की कलियाँ हो, हर पेड़ संतोष के फल दे
    बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.
    सुन्दर सारगर्भित रचना

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  5. सागर से कहें ,वो बादल गढ़, जो स्नेह का जल बरसा जाये
    वो स्नेह बहें हर एक मन में और कटुता को पिघला जाये
    bahut sundar...mere blog par bhi aapka swagat hai :)

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  6. सागर से कहें ,वो बादल गढ़, जोस्नेह का जल बरसा जाये
    वो स्नेह बहें हर एक मन में और कटुता को पिघला जाये
    काश यह संभव हो जाये ,भगवान आपकी इच्छा पूरी करे .....
    (कृपया वर्ड वैरिफिकेसन हटा दीजिये)

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  7. आपका पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट नकेनवाद पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  8. हौसला अफजाई के लिए आप सब का खूब खूब आभार ......सुनील जी वर्ड वेरिफिकेशन हटा दिया है ,शुक्रिया आप ने इस और मेरा ध्यान आकर्षित किया ......

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  9. aapki kavita behad sundar v prerak hae .kabhi mere blog par bhi aayen sda svagat hae.

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  10. बहुत सार्थक सोच...सुंदर अभिव्यक्ति..

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