Sunday 18 December 2011

बताये कोई तो

 बताये कोई तो ये क्यूँ  इन्सां   का  दिल,    दिन     बदिन      छोटा       हुआ      जाता     है
खुदा ने  बनाया तो  खरे  सोने  का था,मिलावट  तुम ने की है, जो   ये खोटा  हुआ    जाता है 

ये तेरा   ये  मेरा ,  ये   अपना     पराया,   बच्चों    को    हम     ने    बस     ये    ही  सिखाया
बचपन में फ़रिश्ते सा था,   उम्र   बढ़ते-2 , वो  वहशी   हुआ  जाता है ,दरिंदा   हुआ   जाता  है 


अब मेरे    शहर की   गलियाँ  सूनी  हो  जाती    है शाम ढलती  ही,खामोशी सी   छा जाती है
कभी अंगीठियाँ जला के तापते थे देर रात तक गलियों में,वो सब,अब    सपना हुआ जाता है  

सांझे चूल्हे  ,  कुवे,  तालाब,आम के बाग़,  हम ने देखे है, उन्हें रूह से   महसूस   भी   किया  है
बच्चों को किस्से भी सुनाये तो, ये सब क्या चीजे होती है ये समझाना , मुश्किल हुआ  जाता है  



ठहर जा  ऐ  इन्सां  रुक जा ,   बस कर ,   इतनी    तरक्की   तो   काफी  है   ना    जीने    के लिए 
ऐसा ना हो तू इतना पा जाये के घुटे दम,कहे इन सब के बीच सांस ले पाना मुश्किल हुआ  जाता है 

(अवन्ती सिंह )
 

12 comments:

  1. सुविधाओं की भाग-दौड़ में
    सुख का है अस्तित्व खो गया
    देह सिर्फ रह गई व्यक्ति की
    पूरा ही व्यक्तित्व खो गया.

    बहुत ही ज्वलंत विषय पर कलम चली है, बधाई.

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  2. आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा ।

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  3. ठहर जा ऐ इन्सां रुक जा , बस कर , इतनी तरक्की तो काफी है ना जीने के लिए
    ऐसा ना हो तू इतना पा जाये के घुटे दम,कहे इन सब के बीच सांस ले पाना मुश्किल हुआ जाता है

    बेहद संवेदनशील प्रस्तुति. बधाई

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  4. बहुत सुन्दर,
    महत्वाकांक्षाएँ इंसान की फितरत बदल रही हैं...
    बहुत सटीक रचना.

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  5. It's time to check reality! Nice post!

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  6. tarakkee karnee hai to
    keemat bhee chukaanee padegee

    bahut umdaa shabd aur vichaar ,congrats

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  7. कल 20/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. Bahut Sundar

    www.poeticprakash.com

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  9. बेहतरीन रचना के लिए बधाई .

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  10. Avant ji kya khoob likha hai apne behtar pravishti ke liye badhai sweekaren.

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  11. bahut shi tarakki kihamne badi kiimat chukai hai

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