Monday 26 December 2011

नव गीत का निर्माण

तुम   यूँ     ही   मुस्कराते     रहो     मेरे     सामने    बैठ कर 
मैं   प्रीत    से   भरे     नव    गीत      का       निर्माण      करूँ  

तुम  अपने   मन   की    मधुरता    बिखरते   रहो       यूँ    ही
मैं   उस    मधुरता    से     अपने     गीतों    में      प्रेम     भरूं

अपनी आँखों  की  चमक   मुझ      तक    ऐसे   ही   पहुचने  दो
समेट कर उसे ,उस से मैं शब्दों   के  लिए    कुछ      गहने   गढ़ूं   


तुम्हारे  प्रेम   की   महक,  जो घेर रही  है  मुझे   चारों   और  से 
इस से   ही  तो   महकेगी   मेरी   ये बिना   सुगंध   की   कविता

अभी मत उठो यहाँ  से, रुको  क्या   तुम     अब   तक   नहीं समझे , 
तुम्हारे होने से ही तो बह रही है मुझ में से छन्द और बंधों की सरिता  


लो तुम हो जाने को  बेकरार  इतना ,तो   मैं   कविता   को   पूर्ण   करती   हूँ
तुम्हारे होने से इसे लिख पाई हूँ सो इस का पूरा श्रेय तुम्हे समर्पित करती हूँ 

7 comments:

  1. लो तुम हो जाने को बेकरार इतना ,तो मैं कविता को पूर्ण करती हूँ
    तुम्हारे होने से इसे लिख पाई हूँ सो इस का पूरा श्रेय तुम्हे समर्पित करती हूँ
    ....pyar ko samarpit sundar prempagi rachna.

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  2. poorn samarpan ....sundartaa ke saath

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  3. समर्पित प्रेम की सुंदर भावाभिव्यक्ति..

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  4. लो तुम हो जाने को बेकरार इतना ,तो मैं कविता को पूर्ण करती हूँ
    तुम्हारे होने से इसे लिख पाई हूँ सो इस का पूरा श्रेय तुम्हे समर्पित करती हूँ........ यही तो सम्पूर्ण प्रेम की परिभाषा है.....

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  5. निरंतर जी,विक्रम जी ,सुषमा जी ,कैलाश जी ,यशवंत जी ,कविता जी आप का खूब खूब आभार जो आप इस रचना को आप ने सराहा .....अपनी टिप्पणियाँ रखी .

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