Tuesday 18 October 2011

नव जीवन

              नव-जीवन 

इन  पत्तों  की  हरियाली  अब  खो चुकी है 
अब  कुछ  दिन  और  बचे  है  इन  के  पास
कुछ दिनों में ये सुखेगे, टूटेगे ,गिर    जायेगे 
क्या फिर  ये परम  शांति को  पा    जायेगे?
या किसी कोने में पड़े   चिखेगें  , चिल्लायेगे के 
हमे तो अभी भी पेड़  की वो कोमल डाली भाती है 
डाल पर वापस जा लगें,ये इच्छा रोज बढती जाती है
अब कौन समझाये इन पत्तों को, के सृष्टि के नियम से चलो
टूटने के बाद ,पहले धरती में मिलो,गलों और फिर किसी नव-अंकुर 
की नसों में  बनके  उर्जा बहों , उस के प्राणों  का  एक  हिस्सा  बनो 
तब कहीं  तुम   दोबारा  पत्ते  बनने  का  अवसर   पा    सकते    हो 
वरना तो यूँ ही इस  कोने  में पड़े पड़े बस  रो सकते हो चिल्ला सकते हो. 

( अवन्ती सिंह )                  
 
 

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