Sunday 8 January 2012

अभी मुझे नहीं पता

मेरी आँखों में पड़े हुए है संकीर्णता  के जाले
जो मुझे देखने नहीं देते प्रेम की व्यापक परिभाषा 
मुझे अभी ये ही लगता है के ,प्रेम स्त्री और पुरुष 
के आपसी लगाव तक ही सीमित है,अभी ये ही है 
प्रेम की परिभाषा मेरे लिए ........
अभी मैं नहीं सोच पाती के प्रेम तो सार्वभौमिक 
सत्य है ,सृष्टि के कण कण में व्याप्त है प्रेम 
प्रेम ही सृष्टि के सर्जन का कारण है और प्रेम की हर
पल खोज ही हमारे जीवन का उदेश्य है 
जिसे हम अनजाने में नाम दे देते है सुख की खोज का 
 पर अभी मुझे नहीं पता है ये सब .........
अभी तो मुझे ये ही लगता है के किसी को पा जाने का 
नाम ही प्रेम है ,अभी कहाँ पता है मुझे के किसी  को 
सुख और शान्ति देने के लिए खुद को मिटा देने ,अपने आप को किसी के 
अस्तित्व में विलीन कर देना ही सही मायने में प्रेम होता है .........
अभी कहाँ पता है मुझे के जीव मात्र से ही प्रेम नहीं होता,प्रेम तो ईश्वर  
से भी होता है ,और ईश्वर से प्रेम के बाद ही तो उस की निर्मित सृष्टि 
के कण कण से ,हर जीव से सही अर्थ में प्रेम कर पाते है हम,कोई पराया नहीं 
रहता ,सब अपने हो जाते है ,दुश्मन पर भी क्रोध नहीं करूणा भाव  उमड़ता है 
उस का भी हित हो ये ही प्रयत्न रहता है ......
काश मैं जान पाती इस सत्य को ,तो मैं अपनी आँखों पर पड़े संकीर्णता के 
जाले को नोच देती अपने ही नाखुनो से ,और अपनी आँखों के नए उजाले से 
देख पाती प्रेम की व्यापकता हो ,फिर प्रेम की परिधि बहुत छोटी नहीं रह जाती मेरे लिए.
काश मैं जान पाती,  पर अभी मुझे नहीं पता ..................

11 comments:

  1. har ek kaa
    apnaa apnaa ahsaas
    apna apna andaaz
    koi kuchh bhee kahe
    prem to bas prem
    hotaa hai

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  2. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति........

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  3. बहुत भावमयी प्रस्तुति......

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  4. अभी कहाँ पता है मुझे के जीव मात्र से ही प्रेम नहीं होता,प्रेम तो ईश्वर
    से भी होता है ,और ईश्वर से प्रेम के बाद ही तो उस की निर्मित सृष्टि
    के कण कण से ,हर जीव से सही अर्थ में प्रेम कर पाते है हम,कोई पराया नहीं

    वाह! अनमोल भाव प्रस्तुत किये हैं आपने.
    बहुत बहुत आभार जी.

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  5. prem ki puja karo,yaha sadhana hai
    prem amritdhar hai,aaradhana hai
    prem ka vistar,pawan karm tap hai
    swarg mil jaye,prabal sambhawana ha

    Bahut hi sundar rachana hai our prem ki sunder abhivyakti hai apki rachana me,badhaai ho avanti singhji

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  6. यह भाव बने रहे ....
    शुभकामनायें !

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  7. प्रेम रस में भीगी हुई सुन्दर रचना है .. बहुत ही भावपूर्ण है . शब्द अच्छे बन पढ़े है ..

    बधाई स्वीकार करे.

    कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html

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    आभार
    विजय

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  8. बहुत सुन्दर और सार्थक सोच...यही भाव सदैव साथ रहे ...

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  9. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...

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