Sunday, 29 January 2012

सख्त मना है

 कविताए दिमाग़ मे कभी भी अंकुरित होने लगती है
मेरे मन मे ये विचार कई बार आता है के जब मैं ही कविताओं के असमय प्रकट
होने से परेशानी मे पड़ जाती हूँ तो फिर उनका क्या हाल होता होगा जो निरन्तर
लिखते रहते है,उन के हालत की   कल्पना   करके   मैं    ने   ये   कविता लिखी है
इस रचना मे  कविताओं को बेवक्त  दिमाग़   मे ना  आने की   हिदायत   देते हुए

 उनके बेवक्त आने के कारण होने वाली परेशानी से रूबरू करवाने की कोशिश की
है ताकि वे वक्त देखकर  दिमाग में  आया करें  ...........


                सख्त मना है 

 

बाद  शाम  के,  मेरे   घर  मे    आना    सख़्त   मना  है


ग़ज़लो और कविताओ तुम को   गाना   सख़्त मना  है


बाद शाम के तो मैं गीत पिया-मिलन के गाने लगती हूँ


आँखे   राह   पर    होती   है,  श्रृंगार  सजाने   लगती  हूँ


लिखने मे कविता देर हुई ये बहाना बनाना सख़्त मना है!


बाद शाम के,   मन-पंछी   उड़   उड़   खिड़की  पर जाता है


आएगे   वो   अब   आएगे,   ये   मधुर   संदेश   दोहराता है


इस संदेश को सुनकर भी, ना   सुन   पाना   सख़्त  मना है


बाद शाम के........


बाद शाम के कान   हर  एक  आहट  सुनते  रहते  है


पिया-मिलन नज़दीक है,पल पल ये मुझ से कहते है


उस आहट को सुन कर भी,ना सुन पाना सख़्त मना है


बाद शाम के.........


बाद    शाम    के   जब   साहब   थक   कर वापस   आते  है


हम भी     आख़िर   इंसान   है,   हंसते       है   मुस्काते    है


उस हास्य-विनोद का,किसी को भी सुन पाना सख़्त मना है


बाद     शाम    कें   मेरे  घर    मे    आना    सख़्त    मना  है.




पुरानी रचना 
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अवन्ती  सिंह 
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आप सब नए ब्लॉग पर सादर आमंत्रित है 
 गौ वंश रक्षा मंच gauvanshrakshamanch.blogspot.com

45 comments:

  1. जितना चाहे मना रहे,
    प्रेम सदा ही बना रहे,

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    1. शुक्रिया प्रवीण जी .....

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  2. :-)

    आप कहें तो हम भी कविता पर पहरे बिठवा दें.......

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    1. ji nahin :) ye to pyaar bhri shikaayt hai kavitaon ko,in ke bina hum aur aap rak bhi nahi payege..... rachna pasnd karne ke liye shikriya....

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  3. बेहतरीन अभिव्यक्ति.....

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  4. अदभुत रचना, ह्रदयस्पर्शी पंक्तियाँ।

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  5. बहुत ख़ूबसूरत भावमयी प्रस्तुति...

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    1. शुक्रिया कैलाश जी .......

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  6. taareef mein kuchh likhnaa bhee kyaa manaa hai ?

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    1. shukriya nirantar ji,tarif karna bilkul mna nahi,dil khol ke taarif likhe :)

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  7. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
    वैसे लाख पहरे लगाओ, वे बेवक्त आएँगी ही|

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  8. कविता इतनी ज्यादा सुन्दर इसे क्या पढ़ना नहीं मना है...

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    1. shukriya dinesh ji, padhna mana nahi hai shauk se padhiye :)

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  9. प्रेमपगी रचना ...सुंदर भाव....

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  10. बेहतरीन रचना

    सादर

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  11. असली कविता प्रेम की ही उपज होती है।

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  12. इनपर कोई पहरा काम नहीं करता ... :) बहुत ही अच्‍छा लिखा है ।

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    1. ji haan aap ne bilkul theek farmaya,shukriya aap ka

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    2. बाद शाम के कान हर एक आहट सुनते रहते है

      पिया-मिलन नज़दीक है,पल पल ये मुझ से कहते है

      उस आहट को सुन कर भी,ना सुन पाना सख़्त मना है.waah....very nice.

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  13. rachna pasand karne aur manch par ise sthaan dene ke liye shukriya aap ka....

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  14. वाह, सख्त मना है तो भी गुस्ताखी कर ही देता हूं कॉमेंट करने का... पर अभी शाम नहीं हुई है।
    बहुत बहुत बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  15. अच्छा हुआ आपने ये नहीं कहा की टिप्पणी करना सख्त मना है :-)

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  16. ज़बरदस्त अभिव्यक्ति.
    आपने मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी दी ,आभार.
    मेरी ग़ज़ल आपने fb पर share करने की सूचना दी पर आपको fb पर ढूंढूंगा कैसे?
    fb पर आपके नाम के कई लोग हैं.यदि अपनी id बता दें तो ढूंढ पाऊँगा.
    मेरी id है :-kunwar.kusumesh@gmail.com

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  17. सादर नमस्कार.....
    आप चिंता न करें मैं ने आप की रचना आप के नाम के साथ ही रखी है आप मेरी वाल पर आकर देखियेगा....
    racna pasnd karne ke liye aap ka shukriya....

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  18. अच्छा किया जो सही वक्त पर हिदायत दे दी.

    सुंदर प्रस्तुति.

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  19. Waah bahut sundar abhivyakti...Badhai!

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  20. वाह बहुत खूब ...शब्द शब्द दिल के करीब

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  21. अपने अपने प्रेम का अपना अपना अंदाज, बढ़िया रचना.

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  22. ज़बरदस्त अभिव्यक्ति.प्रेम की ही उपज है|

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  23. पर कविता भी तो उसी समय आती है जब मधुर मिलन होता है ... ये कविता भी तो प्रेम की सहज उत्पत्ति है ...
    बहुत ही लाजवाब ख्याल को शब्दों का रूप दिया है ...

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  24. i try to search you on facebook....but i cant find.

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  25. सुंदर अभिव्यक्ती ....

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