Sunday, 10 June 2012

प्रेम गीत

जब भी कोई प्रेम गीत लिखना चाहती हूँ मैं
करके 2 पल आँखें बंद कल्पना में उतरती हूँ
तो एक स्त्री  और पुरुष की छवि उतर आती है आँखों में
एक दुसरे को प्रेम से देखते हुए ,पूर्ण समर्पण का भाव आँखों में भरे हुए
लगता है के इन की पूरी दुनिया सिर्फ एक दूजे से ही पूरी हो जाती है
किसी तीसरे का कोई स्थान नहीं है वहां ,और जरूरत भी नहीं
खुद में मग्न ,एक दूजे को सुख और स्नेह से भरने को सदा आतुर रहते है वो दोनों
इन दोनों को देखते ही मेरी कलम कसमसाने लगती है ,बेचैन हो उठती है प्रेम गीत लिखने को
मेरा हर प्रेम गीत के नायक और नायिका ये ही रहे है सदा 
और कैसा इतफाक है प्रिय ,के हम दोनों से काफी मिलती जुलती छवि है इन दोनों की
हुबहू हम से ही लगते है ये भी ...............

(अवन्ती सिंह )

Monday, 4 June 2012

लोथड़ा भर है बस

जिस्म में लहू की बुँदे भी है
और साँसों की धोकनी भी चल रही है निरंतर
धडक रहा है दिल भी ,तो लगता है के जिन्दा है इंसान
पर क्या बस इतने भर से जीवित कहलाया जा सकता है खुद को ?
संवेदनाये सुप्त हो चुकी ,मर चुकी है करुणा  और स्नेह की भावनाएं
सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोच रहा है ये पञ्च तत्वों से रचा खिलौना
तब जीवित होने के ये सब प्रमाण पत्र भी यकीन नहीं दिला पाते
के सच में जिन्दा है इंसान ,लगता है के मांस का चलता फिरता 
लोथड़ा भर है बस .......