Monday, 4 June 2012

लोथड़ा भर है बस

जिस्म में लहू की बुँदे भी है
और साँसों की धोकनी भी चल रही है निरंतर
धडक रहा है दिल भी ,तो लगता है के जिन्दा है इंसान
पर क्या बस इतने भर से जीवित कहलाया जा सकता है खुद को ?
संवेदनाये सुप्त हो चुकी ,मर चुकी है करुणा  और स्नेह की भावनाएं
सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोच रहा है ये पञ्च तत्वों से रचा खिलौना
तब जीवित होने के ये सब प्रमाण पत्र भी यकीन नहीं दिला पाते
के सच में जिन्दा है इंसान ,लगता है के मांस का चलता फिरता 
लोथड़ा भर है बस .......

6 comments:

  1. sarthak post vartman ki peeda byan karti post

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  2. जो भरा नहीं है भावों से...

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  3. यह स्व इतना स्वार्थी हो चुका है कि गर्भनाल के रिश्ते भी पैसे से रुकने लगे हैं !

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  4. क्यों न मैं इन सब को आपकी डाएरी बोल दूँ ?

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  5. बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति।

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  6. बहुत ही गंभीर और सार्थक प्रस्तुति

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