जिस्म में लहू की बुँदे भी है
और साँसों की धोकनी भी चल रही है निरंतर
धडक रहा है दिल भी ,तो लगता है के जिन्दा है इंसान
पर क्या बस इतने भर से जीवित कहलाया जा सकता है खुद को ?
संवेदनाये सुप्त हो चुकी ,मर चुकी है करुणा और स्नेह की भावनाएं
सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोच रहा है ये पञ्च तत्वों से रचा खिलौना
तब जीवित होने के ये सब प्रमाण पत्र भी यकीन नहीं दिला पाते
के सच में जिन्दा है इंसान ,लगता है के मांस का चलता फिरता
लोथड़ा भर है बस .......
और साँसों की धोकनी भी चल रही है निरंतर
धडक रहा है दिल भी ,तो लगता है के जिन्दा है इंसान
पर क्या बस इतने भर से जीवित कहलाया जा सकता है खुद को ?
संवेदनाये सुप्त हो चुकी ,मर चुकी है करुणा और स्नेह की भावनाएं
सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोच रहा है ये पञ्च तत्वों से रचा खिलौना
तब जीवित होने के ये सब प्रमाण पत्र भी यकीन नहीं दिला पाते
के सच में जिन्दा है इंसान ,लगता है के मांस का चलता फिरता
लोथड़ा भर है बस .......
sarthak post vartman ki peeda byan karti post
ReplyDeleteजो भरा नहीं है भावों से...
ReplyDeleteयह स्व इतना स्वार्थी हो चुका है कि गर्भनाल के रिश्ते भी पैसे से रुकने लगे हैं !
ReplyDeleteक्यों न मैं इन सब को आपकी डाएरी बोल दूँ ?
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत ही गंभीर और सार्थक प्रस्तुति
ReplyDelete