भेड़ की खाल में कुछ भेड़िये भी बैठे है
लिबासे इंसान में कुछ जानवर भी बैठे है
शर्मो ह्या को बेच आये है जा के बाज़ार में
और कुटिल मुस्कान चेहरे पर सजा कर बैठे है
घर की बहन बेटियों को भी आती होगी शर्म इन पर
जो दिखावे को , कई राखियाँ बंधा कर बैठे है
जायेगे जब दुनिया से ये, लेगी राहत की साँसे धरती भी
जाने कब से उस के आंचल को, ये पाँव तले दबा कर बैठे है
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बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteजब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग
ReplyDeleteएक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग
भेड़ की खाल में कुछ भेड़िये भी बैठे है
ReplyDeleteलिबासे इंसान में कुछ जानवर भी बैठे है
शर्मो ह्या को बेच आये है जा के बाज़ार में
और कुटिल मुस्कान चेहरे पर सजा कर बैठे है
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♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
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भेड़ की खाल में कुछ भेड़िये भी बैठे है
लिबासे इंसान में कुछ जानवर भी बैठे है
जायेगे जब दुनिया से ये, लेगी राहत की साँसे धरती भी
जाने कब से उस के आंचल को, ये पाँव तले दबा कर बैठे है
ये भेड़िये जानवर दरिंदे कम होते लग नहीं रहे ...
आदरणीया अवंती जी !
आम शहर-गांव-कस्बों से ले कर संसद और विधानसभाओं में भी बलात्कारियों / अपराधियों को संरक्षण मिला हुआ है ...
# वक़्त रहते अच्छी तरह जान लेना ज़रूरी है कि अपने स्वार्थों के लिए जनता को खतरे में डाल कर किस-किस राजनीतिक दल ने अपराधियों - बलात्कारियों को सुरक्षा संरक्षण देकर सत्ता का भी हिस्सा बना रखा है !
सत्ता से अपराधियों को दूर रख पाएंगे तो बलात्कारियों / अपराधियों को रोक पाने की प्रक्रिया शुरू हो सकेगी ...
कविता के भाव आम भारतीय को उद्वेलित करने वाले हैं ।
हार्दिक मंगलकामनाएं !
मकर संक्रांति की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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प्रभावी व सामयिक रचना।
ReplyDeleteसार्थक उद्गार, प्रभावी रचना...
ReplyDeleteसार्थक उद्गार, प्रभावी रचना...
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