मैं हवा सी हूँ
मुझे बाँध सके कोई
इतनी बिसात कहाँ है किसी में
बाँधने वाले को भी उड़ा कर ले जा सकती हूँ
किन्तु बंधी रहती हूँ सदा ,स्नेह की कच्ची डोरी से ....
मैं दहकती ज्वाला सी हूँ
मेरा सम्मान करने वाले मुझे से जीवन पाते है !
करें जो अपमान, वो भस्म हो जाते है
मेरे क्रोध की धधकती लपटों से .....
कल कल करते ,बहते नीर सी हूँ मैं ...
चाहु तो प्यास बुझा दूँ जग की
अपने स्नेह ,अपनी ममता से
चाहूँ तो ध्वस्त कर दूँ ,घर ,बस्ती ,सब
किसी क्रोधित,उफनती नदी की तरह ....
मैं धेर्य से टिकी धरा सी हूँ ...
तुम्हारे हर कर्म को व्यवहार को
चुपचाप सहती हूँ शांत रह कर
पर जब टूट जाये बाँध धेर्य का
तो मेरी जरा सी कसमसाहट
भूकंप ला सकती है,उथल -पुथल
कर सकती है तुम्हारे मन को ,जीवन को .....
अपनी विशालता में सब को समेटे
असीमित आकाश सी भी हूँ मैं
अपने स्नेह-जल को बरसा कर
सब का जीवन पोषित करूँ
नव-जीवन का संचार् करूँ
पर यदि बढ़े तुम्हारे मन का प्रदुषण
तो हो कुपित ,बिजलियाँ गिरा कर
दुष्टों का संघार करूँ ........
(अवन्ती सिंह आशा )
मुझे बाँध सके कोई
इतनी बिसात कहाँ है किसी में
बाँधने वाले को भी उड़ा कर ले जा सकती हूँ
किन्तु बंधी रहती हूँ सदा ,स्नेह की कच्ची डोरी से ....
मैं दहकती ज्वाला सी हूँ
मेरा सम्मान करने वाले मुझे से जीवन पाते है !
करें जो अपमान, वो भस्म हो जाते है
मेरे क्रोध की धधकती लपटों से .....
कल कल करते ,बहते नीर सी हूँ मैं ...
चाहु तो प्यास बुझा दूँ जग की
अपने स्नेह ,अपनी ममता से
चाहूँ तो ध्वस्त कर दूँ ,घर ,बस्ती ,सब
किसी क्रोधित,उफनती नदी की तरह ....
मैं धेर्य से टिकी धरा सी हूँ ...
तुम्हारे हर कर्म को व्यवहार को
चुपचाप सहती हूँ शांत रह कर
पर जब टूट जाये बाँध धेर्य का
तो मेरी जरा सी कसमसाहट
भूकंप ला सकती है,उथल -पुथल
कर सकती है तुम्हारे मन को ,जीवन को .....
अपनी विशालता में सब को समेटे
असीमित आकाश सी भी हूँ मैं
अपने स्नेह-जल को बरसा कर
सब का जीवन पोषित करूँ
नव-जीवन का संचार् करूँ
पर यदि बढ़े तुम्हारे मन का प्रदुषण
तो हो कुपित ,बिजलियाँ गिरा कर
दुष्टों का संघार करूँ ........
(अवन्ती सिंह आशा )
प्रकृति का स्वरूप है नारी जगत को स्थिरता देती है।
ReplyDeleteसुन्दर लिखा है आपने .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. नारी स्वयं प्रकृति है.
ReplyDeleteKAVYA SUDHA (काव्य सुधा): अषाढ़ का कर्ज
kavita too aap ne unda likhi hi hai + chitr ka chayan bhi sahraniy hai
ReplyDeleteसुंदर भाव भीनी अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसाभार....
प्रकृति स्वरूप नारी को सुन्दर भावनात्मक सौगात
ReplyDeletewah re naari aur prakriti ka adbhut samanjasya..!!
ReplyDeletebehtareen rachnakara ho..
डोर चाहे कच्ची हो पर प्रेम की हो तो उम्र भर नहीं टूटती ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
true line about women
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना मन को छूती हुई
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग jyoti-khare.blogspot.in
में सम्मलित हों ख़ुशी होगी
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. सच ही कहा है स्नेह के बंधन से तो आंधियों को भी अंधा जा सकता है.
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
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