Monday, 27 January 2014

ख़त एक  तुम को लिखने का मन है  भगवन 
क्या पता  है     तुम्हारा? किस   धाम   लिखूं ?

मन्दिर  में हो?गिरिजा  में हो? या मस्जिद में पैगाम लिखूं ?
तुम नाम भी अपना बतला दो ,राम लिखूं या रहमान लिखूं?

धरती, अम्बर सूरज लिख दूँ या सुबह लिखूं या शाम लिखूं ?
कह कर तुम को अल्लाह पुकारूँ या जगन्नाथ भगवान लिखूं 

तुम महावीर हो या नानक हो तुम? पर हम सब के पालक हो तुम 
निवास निर्धारित है क्या तुम्हारा? गीता में हो? या  कुरान  लिखूं? 

किस देश में हो?किस   वेश में हो?  किस   हाल     में?   परिवेश     में    हो ?
किसी पत्थर कि  मूर्त में हो या काबे की सुरत में हो?या गुरुग्रंथ स्थान लिखूं?

तुम निराकार  हो या साकार हो तुम ? एक हो  या  अनेक  प्रकार  हो तुम ?  
रुक्मणी के   महल   में   रहते हो? या   मीरा   का   ग्राम     स्थान   लिखूं?

ख़त     एक    तुम      को     लिखने     का     मन     है     भगवन
क्या      पता  है     तुम्हारा?       किस   धाम    लिखूं ?..............

4 comments:

  1. मन में जो है, नाम न उसका,
    भाव समझता, प्यार हृदय का।

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार आपका।

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  3. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...

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