सिर्फ चर्चा और बातें
चर्चा करें समाज में हो रहे परिवर्तन पर!
बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर,आम के आचार पर
बदलती नीतियाँ और बदलते संस्कार पर!
रेल पर, खेल पर, महंगे होते तेल पर
कुश्ती के दंगल पर,खत्म होते जंगल पर !
बाघों के शिकार पर ,हिरणों की हत्या पर
करें खूब चर्चा , झूठ और सत्य पर !
सडक के किनारे ठिठुरते कुछ बच्चों पर
कभी बुरे लोगों पर और कभी अच्छों पर !
गीता के ज्ञान पर, धर्म और विज्ञान पर
वहशी और इंसान पर ,औरों के ईमान पर !
क्या इन चर्चाओं से कुछ बदल पायेगा
कुछ ठोस करने को कदम कब उठ पायेगा!
कुछ ठोस काम करने की सरकार की जिम्मेदारी है
हम करेगे चर्चा , हमे चर्चा की बीमारी है !
आज के परिवेश पर सटीक रचना...
ReplyDeleteचर्चा से आगे कुछ हो ही नहीं पता...
http://mauryareena.blogspot.in/
.......... वाह क्या बात प्रभावी अंदाज़ है
ReplyDeleteसच है, चर्चा में ही सब समाधान कर विश्रामरत हो जाते हैं।
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