Sunday 15 January 2012

तमाम उम्र ढूंढे उसके कदमो के निशां,दश्त -ओ-सहरा में
पर वक्त की तेज  आंधी ने तो  वो सब मिटा दिए थे ......

मर ही जाते हम,मगर बड़ा हौसला दिया उन्होंने
तेरे दिए कुछ फूल जो किताबों में छुपा दिए थे .........


(दश्त   -ओ-सहरा= मैदान और मरुस्थल )


         (अवन्ती सिंह )

11 comments:

  1. किताबों में छुपे फूल जीवन भर के लिए सहारा बन जाते हैं।
    सुंदर कविता।

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  2. बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन| मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  3. मर ही जाते हम,मगर बड़ा हौसला दिया उन्होंने
    तेरे दिए कुछ फूल जो किताबों में छुपा दिए थे .........

    आनंद आ गया, विचार नए लगे. सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई.

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  4. aap to badhiyaa likhte hee ho
    kuchh ham bhee likhne kee koshish karte hein
    अब सूखे फूल किताबों में रखता हूँ, कहानी ज़िन्दगी की उनमें देखता हूँ

    मेरी
    ज़िन्दगी में भी
    फूल खिले थे
    जहाँ को मेरे महकाते थे
    रंगों से सरोबार उसे
    रखते थे
    चमन में बहार
    लाते थे
    अब सूखे फूल किताबों में
    रखता हूँ,
    कहानी ज़िन्दगी की
    उनमें देखता हूँ
    उदासी में खुशी ढूंढता हूँ
    याद बीते पलों की
    करता हूँ
    निरंतर खोयी दुनिया में
    लौटता हूँ
    खिज़ा में बहार का
    अहसास पाता हूँ
    23-11-2010

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  5. मर ही जाते हम,मगर बड़ा हौसला दिया उन्होंने
    तेरे दिए कुछ फूल जो किताबों में छुपा दिए थे
    अति सुन्दर कविता।

    vikram7: जिन्दगी एक .......

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  6. क्या खूब लिखा है जी http://garhwalikavita.blogspot.com/

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  7. मर ही जाते हम,मगर बड़ा हौसला दिया उन्होंने
    तेरे दिए कुछ फूल जो किताबों में छुपा दिए थे .........


    Wah!!! Bahut khoob,
    Excellent use of figure of speech...

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  8. वाह...वाह......

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  9. तमाम उम्र ढूंढे उसके कदमो के निशां,दश्त -ओ-सहरा में
    पर वक्त की तेज आंधी ने तो वो सब मिटा दिए थे ......
    bahut hi sundar rachana ....badhai Awanti ji .

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  10. वाह ! बहुत खूब ..!
    सुन्दर प्रस्तुति !

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