ये कविता मैं ने लगभग २ महीने पहले लिखी थी पर अभी तक मैं ने इसे किसी को सुनाया या लिखा नहीं है,
अब मैं कविताओ के प्रकार बदलने लगी हूँ
आकर बदलने लगी हूँ, व्यव्हार बदले लगी हूँ
कब तक कवितायेँ सावन की फुहारें लाती जाएगी
कब तक मेघा बन बरसेगी,मल्हार गाती जाएगी
इन भीगी कविताओ के वस्त्र ,इस बार बदलने लगी हूँ
अब मैं कविताओं के प्रकार बदलने लगी हूँ
कब तक श्रृंगार -रस में डूबी रास रचाएगी कवितायें
कब तक नृत्य करेगीं कब तक मन बहलाएगी कवितायेँ
मैं अब इनके सारे हार श्रृंगार बदलने लगी हूँ
अब मैं कविताओं के प्रकार बदलने लगी हूँ
कब तक वीर-रस के ढोल नगाड़े पीटेगी कवितायेँ
कब तक इन्कलाब के नारे ,चिल्लाएगी , चीखेगी कविताये
अब इनके हाथों की मैं, तलवार बदलने लगी हूँ
अब मैं कविताओं के प्रकार बदलने लगी हूँ
कब तक सब की आँखों में अश्रु-जल छलकाएगी कविताये
कब तक रोयेगीं, तरसेगीं, तड़पायेगी कवितायेँ
इन की सृष्टी और इनका संसार बदलने लगी हूँ
अब मैं कविताओ के प्रकार बदलने लगी हूँ
अब मैं कविताओ के प्रकार बदलने लगी हूँ