निशा कुलश्रेष्ठ
मुझको अपनी आज़ादी चाहिए
किससे? कैसे ?क्यों भला ?
नहीं जानती ,
आज़ादी किस से......
" अपनों" से .?
अपने "स्वप्नों" से ?
,अपने "विचारो" से ,?
जो गाहे बगाहे
चले ही आते हैं ।
और न चाहते हुए भी
इन्हें देख कर,
मुस्कराना तो पड़ता ही है।।
छोड़ते हैं "अपने" तो ,
दिल टूटता है ।
टूटते हैं" सपने" तो
जान जाती है ।
और विचारहीन होती हूँ तो
जीवन ही व्यर्थ चला जाता है ।
क्या करूँ मैं फिर ?
किस ओर जाना है अभी ?
क्या कोई और नयी राह,,,,,,,,,???
मुझे खोजती है ,,,,,???
क्या कोई और जहाँ मुझे बुलाता है ,,,,,???
क्या कोई और दुआ,,,,,???
मेरी राहों में खडी है ,,,,,,,,??? ,
कोई जमीन ...
कोई असमान, ...
क्या कुछ और मुझे कहीं खोज रहा है ....
क्या मेरे वास्ते नया
जो मुझे पुकारता है ,
कही दूर क्षितिज से ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
(मेरी सखी निशा जी कुछ बीमार चल रही है ,उन के चेहरे पर एक मुस्कान आये इस के लिए उन की एक रचना यहाँ रख रही हूँ ,वो देखेगी तो जरुर खुश होगीं )