भेड़ की खाल में कुछ भेड़िये भी बैठे है
लिबासे इंसान में कुछ जानवर भी बैठे है
शर्मो ह्या को बेच आये है जा के बाज़ार में
और कुटिल मुस्कान चेहरे पर सजा कर बैठे है
घर की बहन बेटियों को भी आती होगी शर्म इन पर
जो दिखावे को , कई राखियाँ बंधा कर बैठे है
जायेगे जब दुनिया से ये, लेगी राहत की साँसे धरती भी
जाने कब से उस के आंचल को, ये पाँव तले दबा कर बैठे है
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