Friday 30 March 2012

फितरत

एक व्यंग 
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कुछ लोगों को   गम  सहने की इतनी आदत होती है
खुशियाँ आकर दस्तक दें तो उनको दिक्कत होती है

आँसूं   आहें   और   तड़प   ये   उनके    साथी होते है 
इन को पाल पोस कर रखना उनकी फितरत होती है

खुशियों  के  चंद  पल  भी  उनको  होते  बर्दाश्त  नहीं 
ये सोच  के  भी  वो  रो लेते,  के हम  क्यूँ  उदास  नहीं

ऐसे लोगों  के  संग  रहना  किसी  के बस की बात नहीं 
वो  जीवन  बस  काटा  करते ,जीने   में  विश्वास  नहीं 

खुशियों   की   अमृत   वर्षा ,   ईश्वर   तो   हर दम करते है
समझदार उसे पीते रहते और मुर्ख कहते, अभी प्यास नहीं.



   

Saturday 24 March 2012

सृष्टि का कारोबार





कभी हम ध्यान से क्षितिज  की तरफ देखे तो धरती आकाश
मिलते हुए प्रतीत होते है और कवि-मन तो उनके बीच के
वार्तालाप को सुन  भी पाता है,........



रोज सुबह की तरह मैं आज भी उगते सुरज को निहार रही थी!

अचानक लगा   ऐसे   जैसे   धरती आकाश को पुकार रही थी!!

हे! गगन हे! आकाश,फिर से अपनी बादल रुपी बाहें फैलाओ ना!

कई दिन से    हो   दूर   दूर,  आज   फिर   हृदय   से लगाओ ना!!

जब     तुम    अपना   स्नेह,   जल    के   रूप    मे    बरसते   हो!

तब   तुम   नव   जीवन    का    मुझ   मे    संचार   कर जाते हो!!

फिर   मैं   हरीतिमा   की   चुनर   औड   कर,करके फूलों से शृंगार!

अपने बालक रुपी जीवों मे बाँट देती हूँ, तुम्हारे सनेह से उपजे उपहार!!

हमारे इसी मिलन से तो  निरंतर,चलता  रहता   है   सृष्टि   का कारोबार!!!

(पुरानी रचना  )

Wednesday 21 March 2012

कहीं दूर क्षितिज से


निशा कुलश्रेष्ठ
मुझको अपनी आज़ादी चाहिए
किससे? कैसे ?क्यों भला ?
नहीं जानती ,
आज़ादी किस से......

" अपनों" से .?
अपने "स्वप्नों" से ?
,अपने "विचारो" से ,?
जो गाहे बगाहे
चले ही आते हैं ।
और न चाहते हुए भी
इन्हें देख कर,
मुस्कराना तो पड़ता ही है।।

छोड़ते हैं "अपने" तो ,
दिल टूटता है ।
टूटते हैं" सपने" तो
जान जाती है ।
और विचारहीन होती हूँ तो
जीवन ही व्यर्थ चला जाता है ।

क्या करूँ मैं फिर ?
किस ओर जाना है अभी ?
क्या कोई और नयी राह,,,,,,,,,???
मुझे खोजती है ,,,,,???
क्या कोई और जहाँ मुझे बुलाता है ,,,,,???
क्या कोई और दुआ,,,,,???
मेरी राहों में खडी है ,,,,,,,,??? ,
कोई जमीन ...
कोई असमान, ...
क्या कुछ और मुझे कहीं खोज रहा है ....
क्या मेरे वास्ते नया
जो मुझे पुकारता है ,
कही दूर क्षितिज से ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,निशा कुलश्रेष्ठ {१५. ३. १२. }

(मेरी सखी निशा जी कुछ बीमार चल रही है ,उन के चेहरे पर एक मुस्कान आये इस के लिए उन की एक रचना यहाँ रख रही हूँ ,वो देखेगी तो जरुर खुश होगीं  )

ऊर्जा का महत्व हम सब के जीवन में

इस विषय में इतना कुछ लिखा जा सकता है के मेरे गीत अंतरात्मा के कहीं खो जायेगे :):)

ये ही सोच कर मैं ने इस विषय के लिए एक अलग ब्लॉग बना दिया है ,उर्जा के विषय में समय समय पर उस ही ब्लॉग पर लिखूंगी ,इस विषय में रूचि रखने वाले मेरे सब ही मित्रगण सादर आमंत्रित है नए ब्लॉग ऊर्जा पर, ऊपर लिखी  लिंक सूचि में ऊर्जा को शामिल कर दिया है ताकि आसानी से ऊर्जा पर पंहुचा जा सके ! शुक्रिया.......

 http://praanurza.blogspot.in/

Thursday 15 March 2012

अबोला वादा



बहुत साल पहले ,एक ढलती हुई शाम में
मेरे हाथों को थाम कर अपने हाथों में ,
अपनी अमृत छलकाती हुई आँखों से
मेरी शर्माती हुई आँखों में झांकते हुए 
तुम ने नहीं कहा ,के तोड़ लाओगे 
सितारे मेरे लिए .........
तुम ने नहीं खाईं कसमें सात जन्मों की 
बस आँखों ही आँखों में किया था एक 
बिना शब्दों का अबोला वादा, के
मेरी हर सांस को  तुम महकाओगे 
खुशियों की अनोखी महक से ......


उस के बाद, हम ने ना जाने कितने 
पतझड़ ,सावन ,बसंत, बहार के 
मौसम देखे ,आंधी और तूफानों
ख़ुशी और गम को जीया है साथ -२

पर मुझे तुम्हारी आँखों में हमेशा अडिग 
नज़र आता रहा है वो अबोला वादा 
तुम ने अपनी हर सांस में जीया है 
और   निभाया   है  उस  वादे  को 
जो तुम ने कभी कहा ही नहीं .....
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अवन्ती सिंह





  

Saturday 10 March 2012

तस्वीरों में खुशियाँ

खुशियों के पल इंसान के जीवन में कम ही आते है 
ये बहुत बार सुना था ,इसलिए जब भी खुशियाँ मिली 
उनकी तस्वीर बना कर रख दी मैं ने .......
के जब ना रहेगी ये खुशियाँ तो इन की देख कर तस्वीरें 
दिल को कुछ पल सुकून मिल जायेगा .....
खुशियाँ आती गयी ,जाती गयी,मैं तस्वीरें बनती गयी....
पर एक दिन जब निकाल कर देखा उन सब तस्वीरों को 
तो मैं हैरान रह गयी ,मेरी आँखे तो उन तस्वीरों को देख 
कर इस कद्र बहने लगी जैसे किसी पुराने  बाँध में दरार 
पड़ गयी हो ,  मैं कितनी नादाँ हूँ,   गयी   हुई     खुशियाँ, 
 तस्वीर      में कहाँ    बांध   कर    रखी   जा सकती है ,
वो तो और गहरा कर देती है ,उन खुशियों के गुज़र जाने 
के अहसास को........



(अवन्ती सिंह )   

Tuesday 6 March 2012

आओ होली आई है!



सखियों ने भेजा सन्देश 
आओ   होली   आई  है!
 
खिले है  पलाश   चटकीले 
टेसू की कली मुस्काई है!


रंग  लिए है  पक्के  वाले 
पिचकारी     मंगवाई  है !


आकर हम संग  खेलो होरी 
ऋतू फागुन  की    आई है !


नहीं   चलेगा   कोई    बहाना 
पिया को संग में लेकर आना 


आकर  गले  लगाना   हम को 
हम संग हँसना और बतियाना !

गाकर गीत होली के "रसिया"
तुम महफ़िल की शान बढ़ाना!  


करेगे    गाल   तुम्हारे   लाल 
देखना  सखी  हमारा कमाल !


कब से तकते  राह   तुम्हारी
क्यूँ तुमने   देर    लगाई  है  !


सखियों  ने  भेजा   सन्देश 
आओ    होली      आई  है! 

(अवन्ती सिंह)



  

Thursday 1 March 2012

आशा


मैं एक आशा हूँ 
मेरे टूट जाने का तो सवाल ही नहीं होता 
मैं बनी रहती हूँ हर एक मन में 
ताकि हर मन जीवित रह सके 

मुझे खुद को बचाए ही रखना है हर हाल में 
यदि मेरा अस्तित्व मिटा, तो मुश्किल हो जायेगा  
किसी के भी अस्तित्व का कायम रहना 

यदि मेरा कोई एक रूप टूट भी गया बिखर भी गया 
तो झट से एक नए कलेवर को धारण करके 
मैं पुनः मन में प्रकट हो जाउंगी 
मैं रहूँगी, सदा रहूँगी.....