एक वृक्ष को माध्यम बना कर मैं उन लोगों का दर्द आप सब तक पहुचाना चाहती हूँ जिनकी उंगली पकड़ कर हम चलते है और जब उन्हें हमारे सहारे की जरूरत होती है तो हम अपनी अलग दुनिया बना उस में खो जाते है ,अपनी जड़ों को भूल जाते है हम........
मैं एक सुखा वृक्ष हूँ,कई जगह से टुटा वृक्ष हूँ
लेकिन मेरी शाखाएं इतनी विशाल है के अभी भी
लेकिन मेरी शाखाएं इतनी विशाल है के अभी भी
कई राहगीरों को धुप से बचाता हूँ , छुपाता हूँ
मैं तडपता हूँ, रोता हूँ खून के आंसू लेकिन जला कर खुद को
दुनिया वालो को अभी भी ठण्ड से बचाता हूँ ,हंसाता हूँ
मुझ में अब एक भी अंकुर न फूटेगा ये तय है लेकिन
कई नए पौधों के अभी भी मैं घर- बार चलाता हूँ
हुजूम चारों तरफ है मेरे, घिरा हूँ वृक्षों से लेकिन,
अकेला हूँ अभी भी ,अकेलेपन से मैं आज भी घबराता हूँ