हमारा जीवन किसानों के साथ परोक्ष रूप से ही नहीं प्रत्यक्ष में भी जुडा हुआ है ,हमारी रसोई में अन्न ,सब्जी फल पहुचता किसी भी माध्यम से हो किन्तु उसे जीवन देने वाला तो किसान ही है यदि किसान न हो तो हम कहाँ से लायेगे ये सब ? पर हम लोग क्या अपने अन्नदाता किसान के बारे में जरा भी सवेदन शील है? आज का किसान कितना परेशान है क्या आप ये जानते है ? आइये पहले ये ही समझ लें
किसान , अन्नदाता भी कहा जाता है उसकी हालत और इज्जत ५० और ६० के दशक में आज से बहुत बेहतर थी ,आज़ादी की लड़ाई में भी सब से अधिक आर्थिक योगदान भी किसानों का ही था ! आज़ादी के बाद सब के हालत सुधरे किन्तु किसान को तो मानो हाशिये पर ही धकेल दिया गया ! किसान जो फसल अपने खून पसीने से सींचता है उस का मूल्य वो स्वयं निर्धारित नहीं कर सकता ! उसे जो मूल्य मिलता है उसे से उसकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है के अगली फसल के लिए उसकी जेब में पैसे ही नहीं होते और उसे क़र्ज़ लेना पड़ता है ! उसके लिए निर्धारित यूरिया / खाद / कीटनाशक जिन पर सब्सिटी मिलती है उस तक न पहुँच कर बाजार में ब्लैक में बेच दिया जाता है और किसान उसका दोगुना मूल्य चूका कर अपने खेतों में डालता है ,महंगे दाम पर बीज मिलते है ,जैसे तैसे बेचारा किसान अपनी फसल को बोता है और जब उसे लगता है अब कुछ ही दिनों में फसल पकने वाली है तो अक्सर बेमौसम बरसात /आंधी /तूफान /बाढ़ /और सूखे के कारण वो कभी आधी तो कभी पूरी फसल खो देता है ! सरकार की तरफ से घोषित सहायता राशि उस तक पहुंच ही नहीं पाती ! वो असहाय है कुछ कर नहीं पाता , पर हम लोग लोग तो इतने असहाय नहीं है ,जिसके हाथ का अन्न खाकर जीवित है ,उसकी मुसीबत में हम उस के कभी काम आए है ? हम लोगों के पास माध्यम है सोशल मिडिया यदि हम लोग चाहें तो किसी भी मुद्दे को इतना उठा सकते है के सरकार मजबूर हो जाती है उस मुद्दे पर काम करने के लिए ! हम कितना सोचते है इस विषय पर कितना लिखते है ? क्या ऐसा नहीं हो सकता के इस विषय पर हम सब साथ मिलकर लिखें? कोई ब्लॉग या कोई पेज़ ऐसा बनाएं जिस पर गंभीरता से लिखा जाएँ और ऐसे लिखा जाये के सोई सरक़ार की आँखें खुल जाएँ ,किसानों से उनकी मर्ज़ी के बिना ज़मीन लेना ये विषय भी उठाना चाहिए ,विकास इतना भी नहीं हो जाना चाहिए के खेती की ज़मीन खत्म हो जाएँ और हम और देशों से अनाज माँगा कर खाएं,प्लीज़ इस पर गंभीरता से सोचें