बहुत साल पहले ,एक ढलती हुई शाम में
मेरे हाथों को थाम कर अपने हाथों में ,
अपनी अमृत छलकाती हुई आँखों से
मेरी शर्माती हुई आँखों में झांकते हुए
तुम ने नहीं कहा ,के तोड़ लाओगे
सितारे मेरे लिए .........
तुम ने नहीं खाईं कसमें सात जन्मों की
बस आँखों ही आँखों में किया था एक
बिना शब्दों का अबोला वादा, के
मेरी हर सांस को तुम महकाओगे
खुशियों की अनोखी महक से ......
उस के बाद, हम ने ना जाने कितने
पतझड़ ,सावन ,बसंत, बहार के
मौसम देखे ,आंधी और तूफानों
ख़ुशी और गम को जीया है साथ -२
पर मुझे तुम्हारी आँखों में हमेशा अडिग
नज़र आता रहा है वो अबोला वादा
तुम ने अपनी हर सांस में जीया है
और निभाया है उस वादे को
जो तुम ने कभी कहा ही नहीं .....
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अवन्ती सिंह