कविताए दिमाग़ मे कभी भी अंकुरित होने लगती है
मेरे मन मे ये विचार कई बार आता है के जब मैं ही कविताओं के असमय प्रकट
होने से परेशानी मे पड़ जाती हूँ तो फिर उनका क्या हाल होता होगा जो निरन्तर
लिखते रहते है,उन के हालत की कल्पना करके मैं ने ये कविता लिखी है
इस रचना मे कविताओं को बेवक्त दिमाग़ मे ना आने की हिदायत देते हुए
सख्त मना है
बाद शाम के, मेरे घर मे आना सख़्त मना है
ग़ज़लो और कविताओ तुम को गाना सख़्त मना है
बाद शाम के तो मैं गीत पिया-मिलन के गाने लगती हूँ
आँखे राह पर होती है, श्रृंगार सजाने लगती हूँ
लिखने मे कविता देर हुई ये बहाना बनाना सख़्त मना है!
बाद शाम के, मन-पंछी उड़ उड़ खिड़की पर जाता है
आएगे वो अब आएगे, ये मधुर संदेश दोहराता है
इस संदेश को सुनकर भी, ना सुन पाना सख़्त मना है
बाद शाम के........
बाद शाम के कान हर एक आहट सुनते रहते है
पिया-मिलन नज़दीक है,पल पल ये मुझ से कहते है
उस आहट को सुन कर भी,ना सुन पाना सख़्त मना है
बाद शाम के.........
बाद शाम के जब साहब थक कर वापस आते है
हम भी आख़िर इंसान है, हंसते है मुस्काते है
उस हास्य-विनोद का,किसी को भी सुन पाना सख़्त मना है
बाद शाम कें मेरे घर मे आना सख़्त मना है.
पुरानी रचना
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अवन्ती सिंह
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मेरे मन मे ये विचार कई बार आता है के जब मैं ही कविताओं के असमय प्रकट
होने से परेशानी मे पड़ जाती हूँ तो फिर उनका क्या हाल होता होगा जो निरन्तर
लिखते रहते है,उन के हालत की कल्पना करके मैं ने ये कविता लिखी है
इस रचना मे कविताओं को बेवक्त दिमाग़ मे ना आने की हिदायत देते हुए
उनके बेवक्त आने के कारण होने वाली परेशानी से रूबरू करवाने की कोशिश की
है ताकि वे वक्त देखकर दिमाग में आया करें ...........सख्त मना है
बाद शाम के, मेरे घर मे आना सख़्त मना है
ग़ज़लो और कविताओ तुम को गाना सख़्त मना है
बाद शाम के तो मैं गीत पिया-मिलन के गाने लगती हूँ
आँखे राह पर होती है, श्रृंगार सजाने लगती हूँ
लिखने मे कविता देर हुई ये बहाना बनाना सख़्त मना है!
बाद शाम के, मन-पंछी उड़ उड़ खिड़की पर जाता है
आएगे वो अब आएगे, ये मधुर संदेश दोहराता है
इस संदेश को सुनकर भी, ना सुन पाना सख़्त मना है
बाद शाम के........
बाद शाम के कान हर एक आहट सुनते रहते है
पिया-मिलन नज़दीक है,पल पल ये मुझ से कहते है
उस आहट को सुन कर भी,ना सुन पाना सख़्त मना है
बाद शाम के.........
बाद शाम के जब साहब थक कर वापस आते है
हम भी आख़िर इंसान है, हंसते है मुस्काते है
उस हास्य-विनोद का,किसी को भी सुन पाना सख़्त मना है
बाद शाम कें मेरे घर मे आना सख़्त मना है.
पुरानी रचना
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अवन्ती सिंह
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