Wednesday 2 November 2011

उंगलियाँ यूँ ना सब पर उठाया करो 
खर्च करने से पहले कमाया करो

जिंदगी क्या है खुद ही समझ जाओगे 
बारिशों  में  पतंगें   उड़ाया   करो 

शाम के बाद,   तुम जब सहर देखो 
कुछ फकीरों को खाना खिलाया करो

दोस्तों से  मुलाकात  के नाम पर 
नीम की पत्तियों को  चबाया करो 

घर उसी का सही तुम भी हक़ दार हो 
रोज आया करो ,रोज  जाया  करो
  ( राहत इन्दौरी  )
 
        ग़ज़ल 

जो मुश्किल में शरीके गम नहीं है !
मेरे  साथी  मेरे  हमदम  नहीं   है !!

ये  माना  एक  से  है  एक   बेहतर!
मगर हम भी किसी से कम नहीं है!! 

तेरे जलवो में जिस ने होश खोये
वो कोई  और  होगा  हम   नहीं  है

(अनजान शायर )







एक खुबसूरत गजल

कितनी पलकों की नमी मांग के लाई होगी 
प्यास तब फूल  की शबनम  ने बुझाई होगी 

एक  सितारा जो   गिरा टूट  के  ऊचाई    से 
किसी  जर्रे  की  हंसी  उसने   उड़ाई   होगी

आंधियां  है के मचलती  है चली  आती  है 
किसी मुफ्लिश ने कहीं शम्मा  जलाई होती

मैं ने कुछ तुम से कहा हो तो ज़बां जल जाए 
किसी दुश्मन  ने ये  अफवाह  उड़ाई  होगी 

हम को आहट  के भरोसे पे सहर तक पहुंचे 
रात भर आप  को  भी  नींद न  आई   होगी

( एक अनजान शायर )