Wednesday, 2 November 2011

एक खुबसूरत गजल

कितनी पलकों की नमी मांग के लाई होगी 
प्यास तब फूल  की शबनम  ने बुझाई होगी 

एक  सितारा जो   गिरा टूट  के  ऊचाई    से 
किसी  जर्रे  की  हंसी  उसने   उड़ाई   होगी

आंधियां  है के मचलती  है चली  आती  है 
किसी मुफ्लिश ने कहीं शम्मा  जलाई होती

मैं ने कुछ तुम से कहा हो तो ज़बां जल जाए 
किसी दुश्मन  ने ये  अफवाह  उड़ाई  होगी 

हम को आहट  के भरोसे पे सहर तक पहुंचे 
रात भर आप  को  भी  नींद न  आई   होगी

( एक अनजान शायर )

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