सुना है तुम्हारे कमरे की खिड़की के पास खड़ा है एक वृक्ष आम का
वो भर गया होगा अब तो बौर से
उस पर बैठ कर कोयल भी कूका करती होगी अक्सर
क्या उस की कूक सुन कर कभी मेरी याद आती है?
कभी तेज हवाओं से उस वृक्ष के पत्ते जब टकराते है आपस में
तो तुम्हे लगता नहीं के तुम्हारे कानों में मेरे बारे में कुछ बुदबुदा
रहे है ये पत्ते .....
और कभी बारिश में ,पत्तों पर पड़ी बूंदे तुम्हे मेरी आँखों की चमक
की याद नहीं दिलाती ?
कभी तो उस वृक्ष की लहराती डालियाँ मेरी जुल्फों सी प्रतीत हुई होगी तुम्हे
कहो न ऐसा हुआ है कभी ? देखना आज उस वृक्ष को और बतलाना मुझे