फूलों से भर गयी है डालियाँ सारी
कोयलें कुहुक कुहुक जाती है
भंवरों ने डेरे डाले कलियों पर
कोपलें , देख ये जल जाती है
नदी में थिरकती है मछलियां खूब
कौन सा नृत्य ये दिखाती है
घटाए बावरी हुई देखो ,बिन मौसम
भी उमड़ी घुमड़ी आती है
बजाके तालियाँ ,ये पत्तियाँ शरारती
क्यूँ दांतों तले उंगलियाँ दबती है
पेड़ों से लिपटी है लताये जो
पलक क्यूँ शर्म से वो झुकाती है
तितलियाँ पहन के लिबास नए
आज कुछ अलग ही इतराती है
उन के आने से जश्न हुआ है ये
बहारें ऐसी कम ही आती है