वो कभी अपना ,कभी अजनबी सा लगा
लगा ख्वाब कभी,तो कभी यकीं सा लगा
उस को देखते ही मर मिटे थे हम तो
हद है के वो फिर भी जिंदगी सा लगा
कभी लगा के सागर हो वो गम्भीरता का
और कभी सिर्फ दिल्लगी सा लगा
कभी तो सांस सांस जीया उसे
और कभी बीती जिंदगी सा लगा
उस के साए में सो गए हम कभी
और कभी धुप वो तीखी सा लगा
कभी पाकर लगा उसे, पा ली कायनात सारी
और कभी वो हाथ से रेत फिसलती सा लगा
उस की आँखों में उतर कर गुम हो गए हम
कभी वो झील सा तो कभी नदी सा लगा
(अवन्ती सिंह)
कभी तो सांस सांस जीया उसे
ReplyDeleteऔर कभी बीती जिंदगी सा लगा
बहुत सुन्दर अवंति जी...
shukriya vidhya ji
Deleteअति सुन्दर !!
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
shukriya Ritu ji
Deleteक्या बात है! बहुत ख़ूब
ReplyDeletewaah kyaa baat hai!!!!!!
ReplyDelete:-)
kabhee lagaa kinaaraa aa gayaa
kabhee gahre paanee mein doobne lagaa
shukriya Dr. saahab
Deleteनिरंतर खुद को खोजती रहती हूँ
ReplyDeletekabhee paa letee hoon
kabhee kho detee hoon
कभी तो सांस सांस जीया उसे
ReplyDeleteऔर कभी बीती जिंदगी सा लगा
उस के साए में सो गए हम कभी
और कभी धुप वो तीखी सा लगा
बहुत खुबसूरत शेर हैं......शानदार ।
shukriya Imraan ji
Deleteबहुत सुन्दर अवंति जी|
ReplyDeleteउस के साए में सो गए हम कभी
और कभी धुप वो तीखी सा लगा
shukriya sangita ji
Deleteबहुत खूब अंजलि जी ,,
ReplyDeleteकभी -कभी कोई अपना भी अंजाना सा लगता है..
बहुत ही बेहतरीन रचना है...
sorry naam me mistake ho gaya..
Deleteavanti ji....
koi baat nahi Reena ji :) naam me kya rkha hai
Deleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
कभी पाकर लगा उसे, पा ली कायनात सारी
ReplyDeleteऔर कभी वो हाथ से रेत फिसलती सा लगा
बेहतरीन पंक्तियाँ।
सादर
shukriya Yashwant ji
Deleteकभी पाकर लगा उसे, पा ली कायनात सारी
ReplyDeleteऔर कभी वो हाथ से रेत फिसलती सा लगा.... बहुत-बहुत ही अच्छी भावपूर्ण रचनाये है......
shukriya sushma ji
Deleteबहुत सुन्दर रचना, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति , बधाई.
ReplyDeleteअद्भुत सा लगा..
ReplyDeleteshukriya prveen ji
Deleteकभी तो सांस सांस जीया उसे
ReplyDeleteऔर कभी बीती जिंदगी सा लगा
बहुत अच्छा प्रयोग।
ग़ज़ल अच्छी लगी। मन में इसके शे’र घर कर गए।
भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteलाजबाब प्रस्तुतीकरण..
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत शेर ......
ReplyDeleteलाजबाब भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteवो कभी अपना ,कभी अजनबी सा लगा
ReplyDeleteलगा ख्वाब कभी,तो कभी यकीं सा लगा.....
कभी पाकर लगा उसे, पा ली कायनात सारी
और कभी वो हाथ से रेत फिसलती सा लगा....
वाह अवन्तिजी मज़ा आ गया ...बहुत खूब !