Saturday 3 December 2011

हम को खूब आता है

  गम  पी    कर    मुस्काते    जाना,  हम    को      खूब        आता  है
आग    हथेली         पर   सुलगाना,    हम     को    खूब    आता      है


दिल  में    घाव  छुपे   है   उतने,        जितने    तारे       आसमान      में
और्रों के   घाव  भर     देना,    खुशियाँ  बिखराना हम  को   खूब आता है


आह    उठे   जब    भी     दिल  में,      हम     हंस  कर    उसे   छुपा  जाते  
अरे ये   तो  ख़ुशी  के  आंसू   है,  ये  बहाना,   हम   को      खूब   आता   है


गम     और      तनहाइयाँ        ही   तो       अपने     सच्चे     साथी   है
और      साथियों    का  साथ    निभाना,   हम   को   खूब    आता      है  


ईश्वर   ने    जो   हमे    दिया   वो    सिर्फ   हमारा    ही   तो    नहीं   है 
मिल   बाँट   कर    सब   संग    खाना ,  हम    को    खूब      आता    है 

 

10 comments:

  1. तन्हाई
    अब तन्हाई से
    दोस्ती हो गयी
    ज़िन्दगी की हकीकत
    समझ आ गयी

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  2. हर पंक्तियाँ शानदार एवं भावपूर्ण है ..!
    कृपया पंक्तियों में space ke & comma का बिखराव हो गया है
    उसे ठीक कर ले!
    आभार!

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  3. राजेन्द्र जी, निराला जी , रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया .....निराला जी त्रुटी बताने के लिए आभार ,मैं ने सुधार तो किया है,फिर भी कमी नज़र आये तो अवश्य कहियेगा......

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  4. बहुत खूब अवंती जी...मेरे ख्याल में २ पंक्तियाँ और लिख डालिए..पूर्ण लगेगा..

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  5. शुक्रिया विद्या जी , आप के ख्याल का सम्मान करते हुए २ पंक्तियाँ और लिखी है.....पढियेगा ...

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  6. बहुत सुन्दर अवंती जी...
    मेरी भावनाओं का मान रखने का बहुत शुक्रिया..
    मेरी शुभकामनाएं सदा के लिए.

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  7. वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने, बहुत सुन्दर जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत.......

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  8. नि:शब्‍द हूं ...

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  9. बहुत अच्छा लगा आपके ब्लौग पर आकर! ... जितनी पढ़ी, सारी एक से एक बेहतरीन!

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