गम पी कर मुस्काते जाना, हम को खूब आता है
आग हथेली पर सुलगाना, हम को खूब आता है
दिल में घाव छुपे है उतने, जितने तारे आसमान में
और्रों के घाव भर देना, खुशियाँ बिखराना हम को खूब आता है
आह उठे जब भी दिल में, हम हंस कर उसे छुपा जाते
अरे ये तो ख़ुशी के आंसू है, ये बहाना, हम को खूब आता है
गम और तनहाइयाँ ही तो अपने सच्चे साथी है
और साथियों का साथ निभाना, हम को खूब आता है
ईश्वर ने जो हमे दिया वो सिर्फ हमारा ही तो नहीं है
मिल बाँट कर सब संग खाना , हम को खूब आता है
आग हथेली पर सुलगाना, हम को खूब आता है
दिल में घाव छुपे है उतने, जितने तारे आसमान में
और्रों के घाव भर देना, खुशियाँ बिखराना हम को खूब आता है
आह उठे जब भी दिल में, हम हंस कर उसे छुपा जाते
अरे ये तो ख़ुशी के आंसू है, ये बहाना, हम को खूब आता है
गम और तनहाइयाँ ही तो अपने सच्चे साथी है
और साथियों का साथ निभाना, हम को खूब आता है
ईश्वर ने जो हमे दिया वो सिर्फ हमारा ही तो नहीं है
मिल बाँट कर सब संग खाना , हम को खूब आता है
तन्हाई
ReplyDeleteअब तन्हाई से
दोस्ती हो गयी
ज़िन्दगी की हकीकत
समझ आ गयी
हर पंक्तियाँ शानदार एवं भावपूर्ण है ..!
ReplyDeleteकृपया पंक्तियों में space ke & comma का बिखराव हो गया है
उसे ठीक कर ले!
आभार!
राजेन्द्र जी, निराला जी , रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया .....निराला जी त्रुटी बताने के लिए आभार ,मैं ने सुधार तो किया है,फिर भी कमी नज़र आये तो अवश्य कहियेगा......
ReplyDeleteबहुत खूब अवंती जी...मेरे ख्याल में २ पंक्तियाँ और लिख डालिए..पूर्ण लगेगा..
ReplyDeleteशुक्रिया विद्या जी , आप के ख्याल का सम्मान करते हुए २ पंक्तियाँ और लिखी है.....पढियेगा ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अवंती जी...
ReplyDeleteमेरी भावनाओं का मान रखने का बहुत शुक्रिया..
मेरी शुभकामनाएं सदा के लिए.
वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने, बहुत सुन्दर जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत.......
ReplyDeleteनि:शब्द हूं ...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपके ब्लौग पर आकर! ... जितनी पढ़ी, सारी एक से एक बेहतरीन!
ReplyDeletewah...bahut khoob
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