असतो मा
निर्बंध कुछ भी नहीं है शायद.
एक व्याकरण है
तुम्हारी भावनाओं में भी !
कभी कभी तो,
कारण-कार्य सम्बन्ध से अधिक शक्तिशाली लगता है
आवश्यकता और आविष्कार का सीकरण,
हमारे संबंधों में भी.
और फिर,
दर्द भी तो नहीं होता है
कभी
खाल के नीचे
हम दोनों में से किसी को.
आओ, हम भी
अपनी खालें बदलना सीख लें.
------------------------------
छोड़ो भी,
अब तो वह बात पुरानी है.
हाँ था,
वह भी एक समय था अपने जीवन में .
तब मैं मैं था,
तब तुम तूम थे .
और हम दोनों,
एक अनूठे 'हम' के भाग बने रहते थे.
लगता था बस यह जीवन है,
लगता था बस स्वर्ग यही है.
लेकिन छोड़ो
यह बातें तो
गुज़रे बीते उस कल की हैं
जिसका परमानेंट एड्रेस
कभी किसी के हाथ न आया.
आज तो मैं भी
उस 'मैं' से बिलकुल ही अलग कोई सा मैं हूँ,
जिसके जाने कितने क़िस्से,
कितने 'हम' का भाग बने बिखरे से पड़े हैं.
और तुम भी तो,
जाने कौन सा 'मैं' बन कर अब
जाने किस या कितने 'हम' में जुड़ से गए हो.
छोड़ो अब वोह पुरानी बातें.
अब तो वोह कल बीत चुका है.
------------------------------
मैं क्या जानूं उपवन में,
कलियों के चटखने की भाषा को,
दूर पहाड़ों के झरनों की गति जैसा संगीत कभी
मेरे कानों में कब घोल सकी
मादक मुस्कान किसी की.
समीकरण मधुभरे तुम्हारे नयनों की चंचल चितवन का,
घर की अंगनाई में उतरती,
पौषप्रात की धूप की गर्म उजियारी से क्या है,
मैं क्या जानूं.
मेरे घर के गंदे से गुलदान में ठूंसे
फूल प्लास्टिक के,
खा रहे धुल न जाने कब से .
मेरे घर में कभी कभी ही तो नल में पानी आता है.
मेरे कमरे में एक अंधा बल्ब जला करता है दिन भर.
(दिन भर तो क्या,
दिन भर में जब भी बिजली आती है)
मेरे घर में तो गर्मी होती है,
बस चूल्हे से या ग़ुस्से से.
मैं न समझ पाऊँगा यह उपमाएं .
इस भाषा को सीख सकूं
इतना मेरा सामर्थ्य कहाँ है.
------------------------------
तमसो मा
अन्धकार,
घोर गहन और निस्सीम,
क्रूर भयानक अन्धकार.
अट्टहास में डूबी हुई है जिसकी नीरवता,
अन्तास्राल में खो सा गया है जिसका हर छोर.
सब कहते हैं ,
मई ही हूँ यह अन्धकार -
यही है मेरा अस्तित्व,
मेरी पहचान,
मेरी परिभाषा.
पर,
लोक वाणी के देवत्व पर
उलाहने की रोली लगा की
इस तमसागर की कुंठित गहराइयों में
किसी निश्छल निष्पाप श्वेतात्मा की तलाश में मग्न
तुम्हारा थका थका सा अजेय विश्वास
मुझे आस्तिक बना देता है.
अखतर किदवाई
अखतर जी की रचनाये हमेशा ही बहुत उच्च कोटि की होती है ,पर ये ३ कविताये मुझे बहुत ही पसंद आई,तारीफ के लिए कोई शब्द नहीं है ..... बधाई स्वीकारें अखतर जी ......
ReplyDeletevery nice and beautifully written
ReplyDeleteसच में अखतर जी की ४ कविताओं की अनोखी श्रृंखला है यह...
ReplyDeleteइतनी गहनता इतनी सुगढ़ता से जीवन मर्म को समझा दिया है इन कविताओं ने..
प्रस्तुति हेतु आपका बहुत बहुत आभार!