कल आधी रात के बाद
कल आधी रात के बाद एक कविता ने मुझे झन्झोर कर जगा दिया
पहले तुम मुझे लिख तो तब ही तुम्हे सोने दूँगी
ये कह कर मुझे डरा दिया ...................
समझाया मैं ने उसे ,तुम क्यूँ हो रही हो बेकरार
ज़रा तो करो सुबह होने का इंतजार
उठते ही सबसे पहले मैं करूँगी तुम्हारा शृंगार
सज़ा-धजा,नव वस्त्र पहनाकर, दूँगी तुम्हे काग़ज़ पे उतार
हंस कर बोली कविता, पागल नहीं हूँ, मुझे है सब पता
२ गीत और १ ग़ज़ल मुझ से आगे वाली पंक्ति मे खड़े है
उतरेगे काग़ज़ पर मुझ से पहले,इस ज़िद्द पर अड़े है
अगर मैं सो गई, या मष्तिश्क की गलियों मे कहीं खो गई
मुझे आने मे देर हुई ज़रा भी तो बाज़ी मार ले जाएगे वो ज़िद्दी
नहीं पता मुझे कुछ भी,अभी करो मेरा शृंगार ...............
पहनाओ मोतियन के हार,सज़ा-धज़ा कर,दो मुझे काग़ज़ पे उतार
फिर तुम भी सो जाना पल दो चार....................
आख़िर मैं गई कविता से हार,शीघ्र किया उसका शृंगार
किया नया कलेवर तैयार,दिया उसे काग़ज़ पे उतार
काश! मेरी नींद ना करने लगे अब कोई ज़िद्द बेकार
वो आ ही जाए पल दो चार.....
कल आधी रात के बाद एक कविता ने मुझे झन्झोर कर जगा दिया
पहले तुम मुझे लिख तो तब ही तुम्हे सोने दूँगी
ये कह कर मुझे डरा दिया ...................
समझाया मैं ने उसे ,तुम क्यूँ हो रही हो बेकरार
ज़रा तो करो सुबह होने का इंतजार
उठते ही सबसे पहले मैं करूँगी तुम्हारा शृंगार
सज़ा-धजा,नव वस्त्र पहनाकर, दूँगी तुम्हे काग़ज़ पे उतार
हंस कर बोली कविता, पागल नहीं हूँ, मुझे है सब पता
२ गीत और १ ग़ज़ल मुझ से आगे वाली पंक्ति मे खड़े है
उतरेगे काग़ज़ पर मुझ से पहले,इस ज़िद्द पर अड़े है
अगर मैं सो गई, या मष्तिश्क की गलियों मे कहीं खो गई
मुझे आने मे देर हुई ज़रा भी तो बाज़ी मार ले जाएगे वो ज़िद्दी
नहीं पता मुझे कुछ भी,अभी करो मेरा शृंगार ...............
पहनाओ मोतियन के हार,सज़ा-धज़ा कर,दो मुझे काग़ज़ पे उतार
फिर तुम भी सो जाना पल दो चार....................
आख़िर मैं गई कविता से हार,शीघ्र किया उसका शृंगार
किया नया कलेवर तैयार,दिया उसे काग़ज़ पे उतार
काश! मेरी नींद ना करने लगे अब कोई ज़िद्द बेकार
वो आ ही जाए पल दो चार.....